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________________ द्वार ४० २०० :::::::::::::: ::40000000 0 0 00000.. मांस और रुधिर गाय के दूध की तरह शुभ्र और दुर्गध रहित होता है। आहार और निहार चर्मचक्षु से अदृश्य होता है (अवधिज्ञानी, मन:पर्यवज्ञानी देख सकते हैं।) श्वासोच्छवास खिले हुए कमल की तरह सुगंधयुक्त होता है। ये चार अतिशय तीर्थकर परमात्मा के जन्म से होते हैं। एक योजन प्रमाण समवसरण में कोटाकोटी मनुष्य, देव एवं तिर्यंचों का निराबाध समावेश हो जाता है। योजनव्यापी एक स्वरूप वाली भगवान् की वाणी (अर्धमागधी भाषा) सुनने वाले सभी जीवों को अपनी-अपनी भाषा में परिणत होकर सुनाई देती है। जैसे वर्षा का पानी विभिन्न स्थानों में पड़कर विविध रूप में परिणत हो जाता है। पूर्वोत्पन्न रोगादि शान्त हो जाते हैं और नये उत्पन्न नहीं होते। पूर्वभव सम्बन्धी या जाति-स्वभावजन्य वैर शान्त हो जाता है। दुष्काल नहीं पड़ता। १०. स्वचक्र या परचक्र का भय नहीं होता। ११. दुष्ट देवादि कृत मारी का उपद्रव शान्त हो जाता है। १२. धान्य का विनाश करने वाले मूषके, शलभ, शुक आदि जन्य ईतियों का नाश होता है। १३-१४. अतिवृष्टि या अनावृष्टि नहीं होती है। (ये सारे उपद्रव जहाँ-जहाँ भगवान् विचरण करते हैं, वहाँ-वहाँ चारों दिशा में पच्चीस-पच्चीस योजन तक नहीं होते)। भगवान के मस्तक के पीछे उनके शरीर से निसृत वर्तुलाकार में व्यवस्थित तेज का भामंडल होता है। पूर्वोक्त ५ से १५ तक के ग्यारह अतिशय चार घाती कर्मों के क्षय से जन्य हैं अत: जब भगवान को केवलज्ञान पैदा होता है तब उत्पन्न होते है। . परमात्मा के बैठने के लिए अत्यन्त स्वच्छ स्फटिकमणि से निर्मित, पादपीठ युक्त सिंहासन होता है। परमात्मा के मस्तक पर अति-पवित्र तीन छत्र होते हैं। परमात्मा के आगे हजारों लघुपताकाओं से सुन्दर अति उन्नत, अनुपमेय रत्नमय, अन्य ध्वजाओं की अपेक्षा महत्त्वशाली अथवा महान ऐश्वर्य की सूचक इन्द्र-ध्वजा चलती है। परमात्मा के दोनों तरफ दो यक्ष चामर बीजते हैं। परमात्मा के आगे कमल पर प्रतिष्ठित, चारों ओर जिसकी किरणें फैल रही हैं ऐसा धर्म का प्रकाश करने वाला धर्म-चक्र चलता है। पूर्वोक्त पांचों ही वस्तुएँ परमात्मा के विचरण करते समय आकाश में चलती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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