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द्वार ३५
वान का जन्म हुआ। यह व्याख्या आगमविरुद्ध है। आगम में भगवान ऋषभदेव के पश्चात् भगवान महावीर की सिद्धि चतुर्थ आरे के ८९ पक्ष शेष रहते बताई है। यदि पूर्वोक्त अर्थ माना जाय तो भगवान ऋषभदेव का आयकाल भी भगवान महावीर के सिद्धि काल में जड़ेगा और उनकी सिद्धि ८४ लाख पूर्व सहित चतुर्थ आरे के ८९ पक्ष शेष रहते मानी जायेगी। अत: ‘उसहसामिणो' में पंचमी अभिविधि के अर्थ में न होकर मर्यादार्थक है।
'उसहसामिणो' में पंचमी मर्यादार्थक मानने पर भी यदि ‘समुप्पन्नो' का अर्थ जन्म लेना किया जाय तो भी असंगत होगा। तब अर्थ होगा कि ऋषभदेव आदि परमात्माओं के निर्वाण से अजित आदि परमात्माओं का जन्म इतने काल पश्चात् हुआ। इससे सर्व जिनों के अन्तरकाल में ही चतुर्थ आरा पूर्ण हो जायेगा.... २३ जिनेश्वरों का आयकाल अन्तरकाल में संग्रहीत न होने से अतिरिक्त रह जायेगा तथा भगवान महावीर की सिद्धि आगामी उत्सर्पिणी में होने का प्रसंग उपस्थित होगा। अत: 'समुप्पन्नो' का अर्थ 'जन्मलेना' न करके सिद्ध हुए, करना ही संगत होगा। इससे अर्थ होगा कि ऋषभदेव आदि के निर्वाण से अजितनाथ आदि का निर्वाण इतने काल पश्चात् हुआ। भगवान भगवान
अन्तराल ऋषभदेव
अजितनाथ ५० लाख-क्रोड़ सागरोपम अजितनाथ
संभवनाथ ३० लाख-क्रोड़ सागरोपम संभवनाथ
अभिनन्दन ९० लाख-क्रोड़ सागरोपम अभिनन्दन
सुमतिनाथ ९ लाख-क्रोड़ सागरोपम सुमतिनाथ
पद्मप्रभ ९० हजार-क्रोड़ सागरोपम पद्मप्रभ
९ हजार-क्रोड़ सागरोपम चन्द्रप्रभ
९ सौ-क्रोड़ सागरोपम चन्द्रप्रभ
विधि ९० क्रोड़ सागरोपम सुविधिनाथ
शीतलनाथ ९ क्रोड़ सागरोपम शीतलनाथ
श्रेयांसनाथ एक सौ सागर, ६६ लाख २६ हजार वर्ष
न्यून एक क्रोड़ सागरोपम श्रेयांसनाथ
वासुपूज्य ५४ सागर वासुपूज्य
विमलनाथ ३० सागर १३. विमलनाथ
अनन्तनाथ ९ सागर अनन्तनाथ
धर्मनाथ
४सागर १५. धर्मनाथ
शान्तिनाथ पल्योपम के ३/४ भाग न्यून ३ सागर शान्तिनाथ
कुंथुनाथ २/४ पल्योपम १७. कुंथुनाथ
अरनाथ १ हजार क्रोड़ वर्ष न्यून १/४ पल्योपम १८. अरनाथ
मल्लिनाथ १ हजार क्रोड़ वर्ष मल्लिनाथ
मुनिसुव्रत ५४ लाख वर्ष
सुपार्श्व
390
सुपार्श्व
१२.
१६.
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