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प्रवचन-सारोद्धार
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पाँचवीं पंक्ति की स्थापना–पाँचवीं पंक्ति के खड़े ३२ खानों में से प्रथम खाने में ऋषभदेव और भरत चक्रवर्ती का ८४ लाख पूर्व का आयु परिमाण लिखना। दूसरे खाने में अजितनाथ और सगर चक्रवर्ती का ३२ लाख पूर्व का....३रे खाने में सम्भवनाथ का ६० लाख पूर्व का...४थे खाने में अभिनन्दन स्वामी का ५० लाखपूर्व का.....५वें खाने में सुमतिनाथ का ४० लाखपूर्व का.....६ठे खाने में पद्मप्रभस्वामी का ३० लाखपूर्व का....७वें खाने में सुपार्श्वनाथ का २० लाखपूर्व का....८वें खाने में चन्द्रप्रभ स्वामी का १० लाखपर्व का....९वें खाने में सविधिनाथ का २ लाख पर्व का....१०वें खाने में शीतलनाथ का १ लाखपूर्व का.....११वें खाने में श्रेयांसनाथ और त्रिपृष्ठ वासुदेव का ८४ लाख वर्ष का....१२वें खाने में वासुपूज्य स्वामी एवं द्विपृष्ठ वासुदेव का ७२ लाख वर्ष का....१३वें खाने में विमलनाथ और स्वयंभू वासुदेव का ६० लाख वर्ष का...१४वें खाने में अनन्तनाथ तथा पुरुषोत्तम का ३० लाख वर्ष का...१५वें खाने में धर्मनाथ और पुरुषसिंह का १० लाख वर्ष का....१६वें खाने में मघवा चक्रवर्ती का ५ लाख वर्ष का....१७वें खाने में सनत्कुमार चक्रवर्ती का ३ लाख वर्ष का...१८वें खाने में शान्तिनाथ का १ लाख वर्ष का....१९वें खाने में कुंथुनाथ का ९५ हजार वर्ष का...२०वें खाने में अरनाथ का ८४ हजार वर्ष का....२१वें खाने में पंडरीक वासदेव का ६५ हजार 'वर्ष का....२२वें खाने में सुभूम चक्रवर्ती का ६० हजार वर्ष का...२३वें खाने में दत्त वासुदेव का ५६ हजार वर्ष का...२४वें खाने में मल्लिनाथ का ५५ हजार वर्ष का...२५वें खाने में मुनिसुव्रत और महापद्म चक्रवर्ती का ३० हजार वर्ष का...२६वें खाने में नारायण वासुदेव का १२ हजार वर्ष का...२७वें खाने में नमिनाथ और हरिषेण वासुदेव का १० हजार वर्ष का...२८वें खाने में जयचक्रवर्ती का ३००० वर्ष का....२९वें खाने में नेमिनाथ तथा कृष्णवासुदेव का १००० वर्ष का...३०वें खाने में ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती का ७०० वर्ष का...३१वें खाने में पार्श्वनाथ का १०० वर्ष का तथा ३२वें खाने में भगवान महावीर का ७२ वर्ष का आयु-मान लिखना चाहिये। पूर्वोक्त बत्तीस खानों का वर्णन आगमानुसार कहा है॥ ४१९-४२९ ।।
-विवेचनजिनेश्वरदेवों के निर्वाणस्थानों के कथन के पश्चात् उनका अन्तरकाल बताया जा रहा है। अन्तरकाल अर्थात् एक तीर्थंकर के निर्वाण से दूसरे तीर्थंकर के निर्वाण का मध्यकाल।
मूलगत 'किल' अव्यय 'यह उपदेश आप्त पुरुषों का है' इस बात का सूचक है तथा मूलगत 'लखेहि' इत्यादि पदों में तृतीया सप्तमी के अर्थ में है। अत: अर्थ होगा कि ऋषभदेव परमात्मा से ५० लाखक्रोड़ सागर व्यतीत होने पर अजितनाथ भगवान समुत्पन्न हुए।
'उसहसामिणो' में पंचमी विभक्ति अवधि की द्योतक है। अवधि के दो प्रकार हैं-अभिविधि और मर्यादा। अभिविधि में अवधि का नियामक अन्तर्भूत होता है व मर्यादा में अवधि का नियामक अन्तर्भूत नहीं रहता। मूलगत ‘समुप्पन्नो' शब्द के भी दो अर्थ हैं-जन्म लेना तथा सिद्ध होना।
यदि 'उसहसामिणो' में पंचमी अभिविधि में तथा 'समुप्पन्नो' का जन्म लेना अर्थ मानकर व्याख्या की जाय तो आशय होगा कि ऋषभदेव स्वामी के जन्म से ५० लाख क्रोड़ सागर के पश्चात् अजितनाथ
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