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________________ १८२ द्वार ३५ ३५ द्वारः | अन्तर-काल इत्तो जिणंतराइं वोच्छं किल उसभसामिणो अजिओ। पण्णासकोडिलक्खेहिं सायराणं समुप्पन्नो ॥ ३९३ ॥ तीसाए संभवजिणो दसहि उ अभिणंदणो जिणवरिंदो। नवहि उ सुमइजिणिंदो, उप्पन्नो कोडिलक्खेहिं ॥ ३९४ ॥ नउईइ सहस्सेहिं कोडीणं वोलियाण पउमाभो। नवहि सहस्रोहिं तओ सुपासनामो समुप्पन्नो ॥ ३९५ ॥ कोडिसएहिं नवहि उ जाओ चंदप्पहो जणाणंदो। नउईए कोडिहिं सुविहिजिणो देसिओ समए ॥ ३९६ ॥ सीयलजिणो महप्पा तत्तो कोडीहि नवहि निद्दिवो । कोडीए सेयंसो ऊणाइ इमेण कालेण ॥ ३९७ ॥ सागरसएण एगेण तह य छावट्ठिवरिसलक्खेहिं । छव्वीसाइ सहस्सेहिं तओ पुरो अंतरेसुत्ति ॥ ३९८ ॥ चउपण्णा अयरेहिं वसुपुज्जजिणो जगुत्तमो जाओ ॥ विमलो विमलगुणोहो तीसहि अयरेहिं रयरहिओ ॥ ३९९ ॥ नवहिं अयरेहिऽणंतो चउहि उ धम्मो उ धम्मधुरधवलो। तिहि ऊणेहिं संती तिहि चउभागेहिं पलियस्स ॥ ४०० ॥ भागैहि दोहिं कुंथू पलियस्स अरो उ एगभागेणं । कोडिसहस्सोणेणं वासाण जिणेसरो भणिओ ॥ ४०१॥ मल्ली तिसल्लरहिओ जाओ वासाण कोडिसहसेण। चउपण्णवासलक्खेहिं सुव्वओ सुव्वओ सिद्धो ॥ ४०२ ॥ जाओ छहि नमिनाहो पंचहि लक्खेहिं जिणवरो नेमी। पासो अद्धट्ठमसय समहियतेसीइसहसेहिं ॥ ४०३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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