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________________ प्रवचन - सारोद्धार -गाथार्थ तीर्थंकरों की जन्म संख्या - एक साथ उत्कृष्ट से बीस तथा जघन्य से दश तीर्थंकरों का जन्म होता है ।। ३२७ ॥ -विवेचन एक काल में अधिक से अधिक २० जिनेश्वरों का जन्म होता है। कारण सभी तीर्थंकरों का जन्म अर्धरात्रि में होता है । जब महाविदेह में रात होती है तब भरत व ऐरवत में दिन होता है अतः उस समय भरत व ऐरवत में तीर्थंकरों का जन्म नहीं हो सकता । मात्र महाविदेह में ही जन्म की सम्भावना है और वह भी २० तीर्थंकरों के जन्म की । १६१ प्रश्न- भले भरत - ऐरवत में उस समय तीर्थंकर का जन्म न हो किंतु एक - एक महाविदेह की ३२-३२ विजय है । उन विजयों में तो जन्म हो ही सकता है। ऐसी स्थिति में उत्कृष्ट से २० तीर्थंकरों का जन्म ही कैसे कहा ? समाधान- यद्यपि एक-एक विदेह में ३२-३२ विजय हैं तथापि एक-एक विदेह की चार-चार विजय में ही युगपत् तीर्थंकर का जन्म होता है अत: पाँच विदेह की २० विजय में ही तीर्थंकरों का जन्म होगा तथा मेरु पर्वत के पण्डक वन में मेरु चूला की चारों दिशा में चार अभिषेक शिलायें हैं I वे शिलायें अर्ध-चन्द्राकार, पाँच सौ योजन लम्बी, चार योजन मोटी, मध्य में दो सौ पचास योजन चौड़ी व मोटी है। ये सभी शिलायें श्वेत सुवर्ण की हैं । • पूर्व दिशा में पांडु - कम्बल शिला है, उसके दक्षिण और उत्तर में एक-एक सिंहासन है । दक्षिण के सिंहासन पर शीता नदी के दक्षिण में स्थित मंगलावती आदि विजयों में जन्मे हुए तीर्थंकरों का तथा उत्तर के सिंहासन पर शीता नदी के उत्तर में स्थित कच्छादि विजयों में जन्में हुए तीर्थंकरों का अभिषेक होता है । • पश्चिम दिशा में रक्त - कम्बल शिला है । उसके दक्षिण और उत्तर में एक-एक सिंहासन है । दक्षिण के सिंहासन पर शीतोदा नदी के दक्षिणवर्ती पद्मा आदि विजय में जन्मे हुए तीर्थंकरों का तथा उत्तर स्थित सिंहासन पर शीतोदा नदी के उत्तरवर्ती गन्धिलावती आदि विजयों में जन्मे हुए तीर्थकरों का अभिषेक होता है । • दक्षिण दिशा में अतिपांडु - कम्बल शिला है। उस पर भरत में जन्मे हुए तीर्थंकरों का अभिषेक होता है। • उत्तर दिशा में अतिरक्त कम्बल शिला है। उस पर ऐरवत क्षेत्र के तीर्थंकरों का अभिषेक होता है। सभी सिंहासन ५०० धनुष लम्बे चौड़े, २५० धनुष मोटे व सर्वरत्नमय हैं। अभिषेक योग्य सिंहासन चार ही हैं अत: एक विदेह में एक साथ चार अधिक जिनेश्वरों का जन्म भी नहीं होता । एक समय में १० जिनेश्वरों का जन्म होता है, कारण ५ भरत और ५ ऐरवत में से प्रत्येक में एक-एक तीर्थंकर का जन्म होता है । (जिस समय भरत व ऐरवत में जन्म होता है उस जघन्यतः Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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