SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ द्वार ९-१० wdi05:55 . प्रवर्तिनी वर्तमान २४ तीर्थकरों की प्रवर्तिनियों के नाम -विवेचनतीर्थंकर प्रवर्तिनी । तीर्थंकर प्रवर्तिनी | तीर्थंकर १. ऋषभ......... बाह्मी ९. सुविधि......... वारुणी १७. कुं...... दामिनी २. अजित........ .फल्ग १०. शीतल ...... सुयशा १८. अरना....... रक्षी ३. संभव....... श्यामा ११. श्रेयांस... धारिणी १९. मल्लिनाथ..... बन्धुमती ४. अभिनन्दन....... अजिता १२. वासुपूज्य... धरिणी २०. मुनिसुव्रत...... पुष्पवती ५. सुमति........ काश्यपी १३. विमल...... धरा २१. नमिनाथ....... अनिला ६. पद्मप्रभ...... रति १४. अनन्त........ पद्मा २२. नेमिना....... यक्षदत्ता ७. सुपाव........ सोमा १५. धर्म...... शिवा २३. पार्श्वनाथ..... पुष्पचूला ८. चन्द्रप्रभ........सुमना | १६. शान्ति......... शुभा २४. महावी........ चन्दना वर्तमान २४ जिनेश्वरों की प्रवर्तिनियां भक्तियुक्त प्राणियों के पापों का सर्वनाश करें ॥ ३०७-३०९ ॥ १० द्वार: बीस स्थानक अरिहंत सिद्ध पवयण गुरु थेर बहुस्सुए तवस्सी य। वच्छल्लया य एसिं अभिक्खनाणोवओगो य ॥३१० ॥ दंसण विणए आवस्सए य सीलव्वए निरइयारो।। खणलव तव च्चियाए वेयावच्चे समाही य ॥३११ ॥ अप्पुव्वनाणगहणे सुयभत्ती पवयणे पभावणया। एएहिं कारणेहिं तित्थयरत्तं लहइ जीवो ॥३१२ ॥ संघो पवयणमित्थं गुरुणो धम्मोवएसयाईया। सुत्तत्योभयधारी बहुस्सुया होति विक्खाया ॥३१३ ॥ जाईसुयपरियाए पडुच्च थेरो तिहा जहकमेणं । सट्ठीवरिसो समवायधारओ वीसवरिसो य ॥३१४ ॥ भत्ती पूया वन्नप्पयडण वज्जणमवन्नवायस्स । आसायणपरिहारो अरिहंताईण वच्छल्लं ॥३१५ ॥ नाणुवओगोऽभिक्खं दंसणसुद्धी य विणयसुद्धी य। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy