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प्रवचन-सारोद्धार
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निष्प्रयोजन पाप करना अनर्थदण्ड है। अनर्थदण्ड चार प्रकार का है-अपध्यानाचरित, प्रमादाचरित, हिंसाप्रदान तथा पापकर्मोपदेश । अत: उनकी त्याग रूप विरति भी चार प्रकार की है। पूर्वोक्त पाँच अतिचार में से कौन अतिचार किस विरति को दूषित करता
है, यह निम्नलिखित हैं१. अपध्यानाचरित विरति में - कौत्कुच्यादि पाँचों का अनाभोग से चिन्तन करना अपध्यानरूप
होने से अतिचार है। किन्तु जानबूझकर रसपूर्वक कौत्कुच्यादि
में प्रवृत्ति करने से व्रत भंग होता है। २. प्रमादाचरित विरति में - कौत्कुच्य, कन्दर्प एवं भोगोपभोग का पुन:-पुन: सेवन प्रमादजन्य
होने से अतिचार है। ३. हिंसाप्रदान विरति में - अधिकरण, ऊखल-मूसल आदि संयुक्त रखना हिंसाप्रदान विरति
में अतिचार है। ४. मौखर्य विरति में - बिना सोचे अधिक बोलना पापकर्मोपदेश विरति में अतिचार है ।
२८२ ॥ शिक्षाव्रत के अतिचार९. सामायिक व्रत -इसके पाँच अतिचार हैं।
प्रणिधान = मन, वचन, काया की प्रवृत्ति प्रणिधान है। यह प्रवृत्ति यदि सावध है तो वह दुष्प्रणिधान कहलाता है।
(i) काय दुष्प्रणिधान - सामायिक में हाथ-पाँव आदि को व्यवस्थित न रखना। (ii) मन दुष्प्रणिधान - क्रोध-मान-माया-लोभ, ईर्ष्या, आदि से प्रेरित मन की प्रवृत्ति तथा
संमोह। (iii) वचन दुष्प्रणिधान - सूत्रों का शुद्ध उच्चारण न करना, सूत्रों का अर्थ न जानना, बोलने
में उपयोग न रखना आदि । • बिना देखे, बिना प्रमाजे जमीन पर बैठना । भले इसमें जीवहिंसा न भी हो, तथापि प्रमादाचरण होने से वह सामायिक नहीं कहलाती। • आर्तध्यान रूप होने से गृहादि की चिन्ता सामायिक में नहीं की जाती। ऐसा करने से सामायिक निरर्थक होती है। • उपयोग और विवेकपूर्वक बोलने वाले की सामायिक सफल
होती है अन्यथा नहीं। (iv) स्मृतिविस्मरण - मैंने सामायिक लिया या नहीं? मैंने सामायिक कब लिया? इस
प्रकार विस्मरण होना अतिचार है।
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