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________________ १४४ ८. अनर्थदण्ड विरमण (i) कौत्कुच्य (ii) मुखरता (iii) भोग-उपभोग की अधिकता आँख, भौएं, होठ, नाक, हाथ-पैर, मुँह आदि बोलते समय या यूँ ही विदूषक की तरह बनाना जिसे देखकर लोग हँसें तथा स्वयं का हलकापन लगे । यह अनर्थदण्ड का प्रथम अतिचार है । बिना विचारे बोलना, असभ्य, असम्बद्ध बोलना, बिना कारण बार-बार बोलना । ऐसे बोलने से पापोपदेश की सम्भावना रहती है, यही इसकी अतिचारता है I भोग एक बार काम में आने वाली वस्तुओं का उपयोग भोग है । जैसे आहार, फूल की माला आदि का उपयोग | उपभोग बार-बार उपभोग में आने वाली वस्तुओं का उपयोग उपभोग है । जैसे वस्त्र, स्त्री आदि का उपयोग । भोगोपभोग की वस्तुओं का आवश्यकता से अधिक उपयोग करना भोगोपभोगातिरेक नामक अतिचार है। I स्नान, पान, भोजन, कुंकुम, चंदन, कस्तूरी, वस्त्र, आभरण आदि का अनावश्यक प्रयोग करना अर्थदण्ड है । इस विषय में समाचारी यह है कि यदि लोग बालों में तेल-आँवला आदि का प्रयोग अधिक मात्रा में करेंगे तो उन्हें धोने के लिये जल भी अधिक चाहियेगा अतः लोलुपतावश लोग स्नान के लिये तालाब, नदी आदि पर जायेंगे । जिससे पोरे आदि अपकाय के जीवों की अधिक विराधना होगी । ऐसा करना नहीं कल्पता । अत: स्नान घर पर ही करना चाहिये । यदि यह सम्भव न हो तो बालों में लगाया हुआ तेल, आँवला चूर्ण आदि घर पर ही साफ करके तालाब पर जावे और वहाँ किनारे पर बैठकर पसली से पानी लेकर स्नान करे। यदि फूल आदि जीवाकुल हो तो उन्हें भी त्याग दें। इस प्रकार अन्यत्र भी समझना । (iv) काम प्रधान वचन प्रयोग (v) संयुक्त अधिकरण - Jain Education International — द्वार ६ निष्प्रयोजन पाप करने का त्याग करना अनर्थदण्ड विरमण है । इसके पाँच अतिचार हैं - वासना को उत्तेजित करने वाले वचन बोलना । श्रावक को ऐसे वचन कभी भी नहीं बोलने चाहिये जिससे स्व अथवा पर को राग पैदा हो । आत्मा को दुर्गति में ले जाने वाला अधिकरण है। जैसे ऊखल, घट्टी आदि । श्रावक को संयुक्त अधिकरण कभी नहीं रखना चाहिये। जैसे ऊखल के साथ मूशल, हल के साथ फाल, शकट के साथ जूड़ा, धनुष के साथ बाण । संयुक्त अधिकरण रखने से कोई भी हिंसक व्यक्ति उसे उठाकर ले जा सकता है । अगर अधिकरण अलग-अलग पड़े हों तो सरलता से मना किया जा है सकता 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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