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प्रवचन-सारोद्धार
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म ताप
युक्त खजूर, आम आदि का आहार अनाभोग से करना अतिचार है। अथवा खजूर आदि का गिर खाया जाता है, नहीं कि बीज
और गिर अचित्त है इस प्रकार सोचकर खाने वाले को व्रत
सापेक्ष आहार होने से अतिचार ही लगता है। (v) तुच्छफल - असार औषधि आदि (बिना पके कोमल फल-फूल आदि) का
भक्षण करना अतिचार है। प्रश्न—तुच्छौषधि भक्षण का अतिचार अलग से क्यों कहा? यदि यह अपक्व, दुष्पक्व है तो पहले, दूसरे अतिचार में आयेगा। यदि सम्यक् पक्व है तो निरवद्य होने से उसके खाने में अतिचार का कोई प्रश्न ही नहीं होगा?
उत्तर-आपका कहना ठीक है किन्तु जैसे अपक्व, दुष्पक्व तथा सचित्त प्रतिबद्ध इन सभी में सचित्तता समान होने पर भी एक औषधि विषयक और दूसरा फल विषयक होने से अलग-अलग
अतिचार गिने जाते हैं, वैसे यहाँ भी सचित्त और तुच्छ औषधि में सचित्तता और औषधित्व समान होने • पर भी एक अतुच्छ है, दूसरी तुच्छ है, अत: उनके अतिचार भी अलग-अलग हैं। कोमल फलादि खाने
नहीं होती । अतः वे तच्छ कहे जाते हैं। उनका अनाभोग अतिक्रमादि से भक्षण करने वाले को तुच्छ औषधि भक्षण रूप अतिचार लगता है। पापभीरु, सचित्त के त्यागी आत्मा को जो तृप्तिकारक हो ऐसे ही पदार्थ अचित्त करके खाने चाहिये, यदि स्वाद या रागवश खायें तो अतिचार लगता है। (अतृप्तिकारक वस्तु को अचित्त करके खाने में भी अधिक आरम्भ होने से पापभीरुता नाश होती है)। यहाँ भाव से विरति की विराधना है और द्रव्य से विरति का पालन है, अत: अतिचार समझना। रात्रिभोजन आदि व्रतों में भी अतिक्रम व अनाभोगवश अतिचार समझना चाहिये। तच्वार्थमते:
१. सचित्त, २. सचित्त प्रतिबद्ध, ३. सम्मिश्रण, ४. अभिषव, ५. दुष्पक्व, अपक्व आहार-ये पाँच अतिचार हैं।
इनमें १, २ और ५वाँ अतिचार पूर्ववत् है। ३. सम्मिश्रण - सचित्त मिश्र आहार जैसे अनार के दाने, करमदे आदि से मिश्रित
कचोरी, तिल मिश्रित यवधान आदि । इनका अनाभोग व अतिक्रम
से उपयोग करे तो अतिचार । अथवा
- सचित्त अवयवयुक्त पकी हुई कणी को अचित्त मानकर आहार
करे तो अतिचार (व्रत सापेक्षता से)। ४. अभिषव
- अनेक द्रव्यों के मिश्रण से बने हुए पदार्थ जैसे सुरा, कांजी, मांस,
शहद आदि खाना। अनाभोग से खाये तो अतिचार अन्यथा । व्रतभंग ।। २८१ ॥
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