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प्रवचन-सारोद्धार
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उत्तर—अपेक्षा से स्त्री के भी पाँच अतिचार घट सकते हैं। स्त्री यदि अपनी सपत्नी की बारी में पति का संग स्वयं कर ले (सपत्नी को अन्तराय करे) तो उसे पहला अतिचार लगता है। अतिक्रम से परपुरुष की इच्छा करने वाली स्त्री को दूसरा अतिचार लगता है अथवा ब्रह्मचारिणी स्त्री यदि अतिक्रम से अपने पति की इच्छा करे तो उसे दूसरा अतिचार लगता है। सभी मतों का वर्गीकरण
मत
स्वदारसंतोषी
परदारवर्जक
स्त्री
सूत्रकार व हरिभद्रसूरि द्वितीय मतम् तृतीय मतम्
५ अतिचार ४ अतिचार ३ अतिचार
३ अतिचार ४ अतिचार ५ अतिचार
३ अथवा ५ ३ अथवा ५ ३ अथवा ५
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(iii) तीव्रकामाभिलाष – भोग की तीव्र अभिलाषा, भोग में मन की अत्यन्त तल्लीनता
तीव्र कामाभिलाष कहलाती है। चिड़े-चिड़ी की तरह बार-बार रतिक्रीड़ा करना। वितृष्णा से नारी के मुँह, काँख, योनि आदि अंगोपाङ्ग में लिंग डालकर दीर्घकाल तक मृतवत् निश्चल पड़े
रहना। (iv) अनंगक्रीड़ा वेदोदयवश परस्पर स्त्री-पुरुष व नपुंसक को भोगने की इच्छा व
उसकी पूर्ति के लिए रतिक्रीड़ा करना, हस्तमैथुन सेवन करना तथा अन्य भी ऐसी क्रीड़ायें करना जिससे वासना प्रबल बने व राग का अतिरेक हो। जैसे केशाकर्षण, कुचमर्दन, दन्तक्षत, नखक्षत आदि। अथवा–अङ्ग = शरीर के अवयव, मैथुन सम्बन्धी अङ्ग = योनि व लिंग। इनसे भिन्न जो हैं वे अनंग कहलाते हैं जैसे, स्तन, कक्षा, मुख आदि । उनमें कामवश रमण करना अनंग क्रीड़ा
श्रावक पापभीरु होने से प्रथम तो ब्रह्मचर्य पालन करने का ही इच्छुक होता है। पर कदाचित् वेदोदयवश काम की जागृति हो जाये और उसे सहन करना सम्भव न हो तो मात्र उस आग को शान्त करने के लिए स्वदारा का सेवन करे। मैथुन क्रिया से काम की शान्ति हो जाने पर तीव कामाभिलाष या अनंगक्रीड़ा कदापि नहीं करे क्योंकि इनसे वासना अधिक भड़कती है। इनका सेवन करने में लेशमात्र भी गुण नहीं है प्रत्युत क्षयादि दोष ही पैदा होते हैं। इस प्रकार अनंगक्रीडा व तीव्रकामाभिलाष इन दोनों में प्रतिषिद्ध का आचरण करने से व्रतभंग
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