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________________ प्रवचन - सारोद्धार १३३ उत्तर - सत्यम् । नीचा दिखाने के भाव से किसी को कलंकित करने में व्रत भंग होता है किन्तु जहाँ अनाभोग से कलंक दिया जाता है और सामने वाला व्यक्ति भी जिसे कलंक रूप महसूस करता है वहाँ यह अतिचार रूप है । (ii) रहस्य दूषण (iii) दारामंत्र भेद दूसरे व तीसरे अतिचार में अन्तर (iv) कूटलेख (v) मृषा उपदेश Jain Education International - रहस्य एकान्त में प्रकट करने योग्य को। दूषण सबके संमुख प्रकट करना अर्थात् राजादि से सम्बन्धित गुप्त बात की पूर्ण जानकारी लिये बिना ही, इंगित चेष्टा आदि से अनुमान कर दूसरों के संमुख प्रकट करना रहस्य दूषण है। जैसे किसी को एकांत में सलाह करते हुए देखकर अनुमान से ही कह देना कि ये लोग राजा के विरुद्ध सलाह कर रहे हैं । अथवा, रहस्यदूषण यानि पैशून्य - चुगलखोरी। एक-दूसरे की चुगली करके दो व्यक्तियों के दिल में ऐसी शंका पैदा करना कि उन दोनों का प्रेम ही नष्ट हो जाय । 1 पत्नी, मित्र आदि की गुप्त बात प्रकट करना दारामंत्रभेद है यद्यपि इसमें मृषावाद जैसा कुछ भी नहीं है । जो कहा गया वह सत्य ही है तथापि यह ऐसा सत्य है जिसे सुनकर सम्बन्धित व्यक्ति लज्जावश आत्महत्या कर सकता है । इस दृष्टि से यह मृषावाद है | सत्यासत्य रूप होने से यह अतिचार है। रहस्य दूषण में तीसरा व्यक्ति मंत्रणा करने वालों के आकार....इंगितादि के आधार पर कल्पना करके बात प्रकट करता है जबकि 'दारामंत्रभेद' में मंत्रणा करने वाला स्वयं ही बात को बाहर प्रचारित करता I 1 सर्वथा झूठा लिखना । 'मैं काया से असत्य नहीं बोलूँगा, न किसी को असत्य बोलने की प्रेरणा दूँगा ।' दूसरे व्रत में यही प्रतिज्ञा होती है । 'कूटलेख' से यह प्रतिज्ञा सर्वथा भंग हो जाती है फिर भी जहाँ कूटलेख सहसा, अनाभोग व अतिक्रम से लिखा जाता है वहाँ व्रत की अपेक्षा होने से यह अतिचार रूप ही है। 1 वहाँ लिखने वाला यही समझता है कि मैंने असत्य भाषण का त्याग किया है, न कि लिखने का । असत्य उपदेश देना जैसे 'वहाँ जाकर तुम यह... यह बोलना....ऐसे-ऐसे कहना' इत्यादि । इस प्रकार असत्य बोलने की शिक्षा देना मृषा - उपदेश है। जहाँ व्यक्ति सीधा न कहकर किसी को माध्यम बनाकर झूठा उपदेश देता है वहाँ व्रत की अपेक्षा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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