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द्वार ६
(i) अल्पाहारा - जघन्य से १ कवल, उत्कृष्ट ८ कवल तथा मध्यम २ से ७ कवल
तक खाना। (ii) अपार्धा - जघन्य ७ कवल, उत्कृष्ट १२ कवल तथा मध्यम १० से १२
कवल खाना। (iii) द्विभाग - जघन्य १३ कवल, उत्कृष्ट १६ कवल तथा मध्यम १४ कवल
से १६ कवल खाना। (iv) प्राप्ता - जघन्य १७ कवल, उत्कृष्ट २४ कवल तथा मध्यम १८ से २३
कवल खाना। (v) किंचित् - जघन्य २५ कवल, उत्कृष्ट ३१ कवल तथा मध्यम १७ से ३०
न्यूना कवल खाना। जल की ऊनोदरी भी आहार की तरह समझना। उपकरण ऊणोदरी - उपकरणों (वस्त्र-पात्र आदि) में कटौती करना, उपकरण ऊणोदरी
है। यह ऊणोदरी जिनकल्पी व जिनकल्प के अभ्यासी मुनियों से सम्बन्धित है। स्थविरकल्पियों के ऐसी ऊणोदरी नहीं होती, क्योंकि आवश्यक उपकरण के अभाव में उनका संयम पालन अशक्य है। हाँ, आवश्यक उपकरणों से अधिक उपकरण न रखना, यह ऊणोदरी स्थविरकल्पियों के भी होती है। जो संयम पालन में उपकारी बनते हैं वे उपकरण हैं, इससे अधिक अधिकरण
भाव ऊणोदरी
३. वृत्तिसंक्षेप
द्रव्यतः
- अपने अन्त:करण को जिनवचन से भावित बनाकर क्रोधादि का
त्याग करना। - वृत्ति = जिसके द्वारा जीवन चले ऐसी भिक्षा, संक्षेप = संकोच ।
अर्थात् अभिग्रहपूर्वक आहार-पानी ग्रहण करना। अभिग्रह के
अनेक रूप हैं- द्रव्यतः, क्षेत्रत:, कालत: व भावत: । - मैं आज लेपकारी (जिससे पात्र लिप्त बनता हो), अलेपकारी (जिससे पात्र लिप्त न बनता हो), द्रव्य विशेष जैसे भाले की अणी पर रखा हुआ मालपूआ आदि मिलेगा तो ही मैं भिक्षा लूँगा अथवा चम्मच, कटोरी आदि से दी गई भिक्षा ही लूँगा अन्यथा नहीं। इस प्रकार द्रव्य विषयक अभिग्रहपूर्वक भिक्षा लेना। क्षेत्र सम्बन्धी अभिग्रहपूर्वक भिक्षा ग्रहण करना। जैसे एक, दो
क्षेत्रतः
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