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प्रवचन-सारोद्धार
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८. प्रभावना
- धर्मकथा, वादी-विजय, दुष्कर-तप की आराधना आदि के द्वारा
जिन शासन की प्रभावना करना। • यद्यपि जिन शासन शाश्वत, जिन प्ररूपित, देव-देवेन्द्रों से नमस्कृत होने से स्वयं प्रकाशमान
है, तथापि अपने सम्यक्त्व की निर्मलता के इच्छुक आत्मा अपने किसी प्रभावशाली गुण से शासन की प्रभावना करते हैं। उदाहरणार्थ वज्रस्वामी आदि की तरह। पूर्वोक्त आचारों से
विपरीत आचरण दर्शनाचार के अतिचार हैं ॥ २६८ ॥ चारित्राचार के आठ अतिचार
चित्त की स्वस्थतापूर्वक मन-वचन व काया का व्यापार-प्रणिधान योग है, उससे युक्त पाँच समिति और तीन गुप्ति का पालन करना चारित्राचार है। इससे विपरीत आचरण चारित्राचार के अतिचार हैं। २६९ ॥
__ ज्ञानाचार, दर्शनाचार व चारित्राचार से विपरीत आचरण करना ज्ञानादि के अतिचार हैं। आचारों से विपरीत आचरण तभी होता है जब हमारा भाव दूषित हो। अत: चित्त की मलिनता ही अतिचार है। तपाचार के १२ अतिचार- छ: बाह्य, छ: आभ्यन्तर१. अनशन
- आहार त्याग (न + अशन = अनशन)। इसके दो भेद
हैं-इत्वरिक व यावत्कथिक । () इत्वरिक - परिमित काल तक आहार का त्याग करना इत्वरिक अनशन है।
जैसे नवकारसी से लेकर प्रथमजिन के शासन में १२ मास का, मध्यवर्ती २२ जिन के शासन में ८ मास का तथा चरमजिन के
शासन में ६ मास का उपवास होता है। (ii) यावत्कथिक - आजीवन आहार का त्याग करना यावत्कथिक अनशन है। चेष्टा
व उपाधि के भेद से यह तीन प्रकार का है, पादपोपगमन, इंगितमरण तथा भक्तपरिज्ञा । इन तीनों का स्वरूप १५७वें द्वार
में देखें। २. ऊनोदरी
- अपनी आवश्यकता से कुछ कम आहार ग्रहण करना। इसके
दो भेद हैं-द्रव्य और भाव । • द्रव्य उनोदरी-यह आहार, पानी व उपकरण के भेद से ३ प्रकार की है। आहार ऊनोदरी - अपने आहार-प्रमाण से कम खाना आहार ऊनोदरी है। पुरुष
का आहारमान ३२ कवल तथा स्त्री का २८ कवल है। कवल का प्रमाण छोटे नींबू जितना है अथवा जितना ग्रास लेने पर मुँह विकृत न बने वह कवल का प्रमाण है, इससे कम खाना उनोदरी है। यह ऊनोदरी अल्पाहारादि के भेद से ५ प्रकार की है।
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