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________________ प्रवचन-सारोद्धार ११९ 1526:01AAAAA12000550000000000000 0 015500 अर्थ – चूल्हे-घट्टी से दशगुणा अधिक हिंसा का स्थान घाणी-चालक है। उससे दशगुणा अधिक हिंसक एक शराब बनाने वाला है। उससे दशगुणा अधिक हिंसा का स्थान एक वेश्या है व उससे दशगुणा अधिक पाप का स्थान एक राजा है। १३. निछिनकर्म - गाय, भैंस, ऊँट, बैल आदि के अङ्गों को छिदवाना, नासिकावेध करवाना, बैल आदि को गाड़ी में जोतने के लिये नपुंसक बनाना, ऊँट की पीठ गलवाना, गायों के कर्णकम्बल आदि का छेदन करना। १४. असतीपोषण - बिल्ली, तोता, मोर, बन्दर, कुत्ता, दासी, वेश्या तथा नपुंसक आदि कुशील प्राणियों का पोषण करना। १५. जलाशयशोषण - तालाब, कुँआं, बावड़ी आदि का पानी सुखाना। इससे अप्काय जीवों के साथ मछली आदि त्रस जीवों का भी नाश होता है। • पूर्वोक्त पन्द्रह कर्मादान का सेवन करने से जीवों की महती विराधना होती है अत: ये सर्वथा त्याज्य है। इनकी गणना उपलक्षणमात्र है अत: ऐसे सावद्यकार्य जो भी हैं सभी त्याज्य समझना चाहिये। • इन कर्मादानों की आसेवना का त्याग कर देने पर यदि अज्ञानतावश सेवन हो जाय तो अतिचार लगता है ।। २६५-२६६ ।। ज्ञानाचार के आठ अतिचार ज्ञान के आचार में मलिनता आना ज्ञानातिचार है। ज्ञान के आचार आठ हैं। अतिचारों को जानने से पूर्व यदि आचार को जान लें तो अतिचारों को जानना सुगम होगा। इसी प्रकार दर्शन व ज्ञान सम्बन्धी अतिचारों के विषय में समझना। १. काल - अङ्गप्रविष्ट, अनंग-प्रविष्ट आदि आगमों को पढ़ने का जो समय निश्चित है. उन आगमों का उसी समय स्वाध्याय करना काल विषयक आचार है। समय पर किया गया काम फलदायक होता है. जैसे समय पर की गई खेती। अन्यथा दोषों की सम्भावना रहती है। २.विनय - ज्ञान व ज्ञान के साधन, पुस्तक, पेन आदि का आदर करते हुए पढ़ना तथा ज्ञानी को आसन देना, उनकी आज्ञा का पालन करना आदि। ३. बहुमान - ज्ञान व ज्ञानी के प्रति आन्तरिक प्रीति रखते हुए पढ़ना। ४. उपधान – उप = समीप में, धीयते = धारण करना। सूत्रादि को पढ़ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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