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________________ प्रवचन-सारोद्धार १११ 440054 --- (ii) आभ्यन्तर ऊर्ध्विका:-दोनों पाँवों के अङ्गठों को मिलाकर व एड़ियों को फैलाकर कायोत्सर्ग करना ॥२५५-२५६ ।। ११. संयती – साध्वी की तरह चोलपट्टा या चादर कंधे पर ओढ़कर कायोत्सर्ग करना। १२. खलीन - घोड़े के लगाम की तरह ओघे या चरवले को पकड़कर काउस्सग्ग करना । अथवा लगाम से दुःखी घोड़े की तरह शिर ऊँचा-नीचा करते हुए काउस्सग्ग करना ॥२५७ ॥ १३. वायस - कौए की तरह चारों दिशाओं में दृष्टि घुमाते हुए कायोत्सर्ग करना। १४. कपित्थ - जूं न आ जाय इस भय से अपने कपड़ों को इकट्ठा करके दोनों जांघों के बीच दबाकर कायोत्सर्ग करना ॥२५८ ।। अन्यमते: - कबीठ फल की तरह गोल-गोल मुट्ठी बन्द करके कायोत्सर्ग करना। १५. शीर्षोत्कंपित - जैसे भूत लगा हो, इस तरह शिर धुनाते हुए कायोत्सर्ग करना । १६. मूक - कायोत्सर्ग में रहे हुए व्यक्ति के पास यदि कोई वनस्पति आदि का छेदन-भेदन कर रहा हो तो कायोत्सर्ग में ही गूंगे की तरह हूं.... हूं करना ॥२५९ ॥ १७. अङ्गुलिकाधू - नवकार की गणना के लिये पौर पर अङ्गलि घुमाना, किसी अन्य कार्य का सूचन करने हेतु भृकुटि से इशारा करना अथवा यूँ ही भौहे नचाना ॥२६०॥ १८. वारुणी - शराबी की तरह बुड़-बुड़ करते हुए अथवा घूरते हुए काउस्सग्ग करना। १९. प्रेक्षा -- बन्दर की तरह होठ फड़फड़ाकर कायोत्सर्ग करना ॥२६१ ।। • जो लोग कायोत्सर्ग के २१ दोष मानते हैं, उनके मतानुसार स्तंभ व कुड्य दोष तथा अङ्गुलि व भ्रू दोष अलग-अलग हैं। • अन्य कुछ दोष१. समय बीतने के बाद कायोत्सर्ग करना। २. व्याक्षिप्त चित्त से कायोत्सर्ग करना। ३. लुब्ध-चित्त से कायोत्सर्ग करना। ४. सावद्य-चित्त से कायोत्सर्ग करना । ५. विमूढ़-चित्त से कायोत्सर्ग करना। ६. पट्टकादि के ऊपर पैर रखकर कायोत्सर्ग करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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