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प्रवचन-सारोद्धार
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--- (ii) आभ्यन्तर ऊर्ध्विका:-दोनों पाँवों के अङ्गठों को मिलाकर
व एड़ियों को फैलाकर कायोत्सर्ग करना ॥२५५-२५६ ।। ११. संयती
– साध्वी की तरह चोलपट्टा या चादर कंधे पर ओढ़कर कायोत्सर्ग
करना। १२. खलीन
- घोड़े के लगाम की तरह ओघे या चरवले को पकड़कर काउस्सग्ग
करना । अथवा लगाम से दुःखी घोड़े की तरह शिर ऊँचा-नीचा
करते हुए काउस्सग्ग करना ॥२५७ ॥ १३. वायस
- कौए की तरह चारों दिशाओं में दृष्टि घुमाते हुए कायोत्सर्ग
करना। १४. कपित्थ
- जूं न आ जाय इस भय से अपने कपड़ों को इकट्ठा करके दोनों
जांघों के बीच दबाकर कायोत्सर्ग करना ॥२५८ ।। अन्यमते:
- कबीठ फल की तरह गोल-गोल मुट्ठी बन्द करके कायोत्सर्ग
करना। १५. शीर्षोत्कंपित
- जैसे भूत लगा हो, इस तरह शिर धुनाते हुए कायोत्सर्ग करना । १६. मूक
- कायोत्सर्ग में रहे हुए व्यक्ति के पास यदि कोई वनस्पति आदि
का छेदन-भेदन कर रहा हो तो कायोत्सर्ग में ही गूंगे की तरह
हूं.... हूं करना ॥२५९ ॥ १७. अङ्गुलिकाधू
- नवकार की गणना के लिये पौर पर अङ्गलि घुमाना, किसी अन्य कार्य का सूचन करने हेतु भृकुटि से इशारा करना अथवा यूँ ही
भौहे नचाना ॥२६०॥ १८. वारुणी
- शराबी की तरह बुड़-बुड़ करते हुए अथवा घूरते हुए काउस्सग्ग
करना। १९. प्रेक्षा
-- बन्दर की तरह होठ फड़फड़ाकर कायोत्सर्ग करना ॥२६१ ।। • जो लोग कायोत्सर्ग के २१ दोष मानते हैं, उनके मतानुसार स्तंभ व कुड्य दोष तथा अङ्गुलि
व भ्रू दोष अलग-अलग हैं। • अन्य कुछ दोष१. समय बीतने के बाद कायोत्सर्ग करना। २. व्याक्षिप्त चित्त से कायोत्सर्ग करना। ३. लुब्ध-चित्त से कायोत्सर्ग करना। ४. सावद्य-चित्त से कायोत्सर्ग करना । ५. विमूढ़-चित्त से कायोत्सर्ग करना। ६. पट्टकादि के ऊपर पैर रखकर कायोत्सर्ग करना।
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