________________
प्रवचन-सारोद्धार
१०९
2525-10000-0051
आलावग-गणणटुं संठवणत्थं च जोगाणं ॥ २६० ॥ काउस्सग्गंमि ठिओ सुरा जहा बुडबुडेइ अव्वत्तं । अणुपेहंतो तह वानरोव्व चालेइ ओट्ठपुडे ॥ २६१ ॥ एए काउस्सग्गं कुणमाणेण विबुहेण दोसा उ । सम्मं परिहरियव्वा जिणपडिसिद्धत्ति काऊणं ॥ २६२ ॥
-गाथार्थ१. घोटक, २. लता, ३. स्तंभ कुड्य, ४ माल, ५ शबरी, ६ वधू, ७. निगड़ ८. लंबोत्तर, ९. स्तन, १०. ऊर्ध्विका, ११. संयती, १२. खलीन, १३. वायस, १४. कपित्थ, १५. शीर्षोत्कंपित, १६. मूक, १७. अङ्गली-भृकुटी, १८. वारुणी और १९. प्रेक्षा-ये १९ काउस्सग्ग के दोष हैं। २४७-२४८॥
१. घोड़े की तरह पाँव टेढ़ा रखकर अथवा संकुचित करके काउस्सग्ग करना घोटक दोष हैं। २. हवा से हिलने वाली लता की तरह हिलते हुए काउस्सग्ग करना लता दोष है। २४९ ।।
३. खंभा अथवा दीवार का सहारा लेकर काउस्सग्ग करना स्तंभ-कुड्य दोष है। ४. छत के सहारे सिर टिकाकर काउस्सग्ग करना माल दोष है ।। २५० ॥
५. निर्वस्त्र भीलणी दूसरों को देखकर जैसे हाथों से अपना गुप्तांग ढक लेती है वैसे गुप्तांग के आगे हाथ रखकर काउस्सग्ग करना शबरी दोष है ॥ २५१ ।।
६. कुलवधू की तरह सिर झुकाकर काउस्सग्ग करना वधू दोष है। ७. बेडी डाले हुए कैदी की तरह पाँव एकदम पास रखकर या फैलाकर कायोत्सर्ग करना निगड़ दोष है॥ २५२ ।।
८. नाभि से ऊपर तथा घुटनों से नीचे तक का चोलपट्टा पहनकर काउस्सग्ग करना लंबोत्तर दोष है।। २५३ ॥
९. मच्छर आदि से रक्षण करने के लिये अथवा अनाभोग से स्तनों को चोल पट्टे से ढक कर काउस्सग्ग करना स्तन दोष है ।। २५४ ।।
१०. ऊर्ध्विका बाह्य और आभ्यन्तर दो प्रकार का है। पाँवों की एड़ियों को मिलाकर दोनों पञ्जों को अलग रखकर काउस्सग्ग करना बाह्य ऊर्ध्विका दोष है ।। २५५ ॥
पाँवों के दोनों अंगूठों को मिलाकर, एड़ियों को अलग रखकर काउस्सग्ग करना आभ्यन्तर 'ऊर्ध्विका' है ।। २५६ ।।
११. चद्दर या चोलपट्टे से साध्वी की तरह कंधे ढककर काउस्सग्ग करना संयती दोष है। १२. घोड़े की लगाम की तरह रजोहरण को आगे रखकर काउस्सग्ग करना खत्नीन दोष है ॥ २५७ ।।
१३. चञ्चल चित्त कौए की तरह काउस्सग्ग में आँखे घुमाना वायस दोष है। १४. 'जू' के भय से कपड़ों को चारों तरफ से एकत्रित करके काउस्सग्ग करना कपित्थ दोष है ।। २५८ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org