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________________ द्वार ५ १०८ स लंबुत्तर थण उड्डी संजइ खलिणे य वायस कवितु ॥ २४७ ॥ सीसोकंपिय मूई अंगुलिभमुहा य वारुणी पेहा। एए काउस्सग्गे हवंति दोसा इगुणवीसं ॥ २४८ ॥ आसोव्व विसमपायं आउंटावित्तु ठाइ उस्सग्गे। कंपइ काउस्सग्गे लयव्व खर-पवण-संगेणं ॥ २४९ ॥ खंभे वा कुड्डे वा अवठंभिय कुणइ काउस्सग्गं तु । माले य उत्तमंगं अवठंभिय कुणइ उस्सग्गं ॥ २५० ॥ सबरी वसणविरहिया करेहि सागारिअं जह ठएइ। ठइऊण गुज्झदेसं करेहि इअ कुणइ उस्सग्गं ॥ २५१ ॥ अवणामिउत्तमंगो काउस्सग्गं जहा कुलवहुव्व । नियलियआ विव चरणे विस्थारिय अहव मेलविउं ॥ २५२ ॥ काऊण चोलपट्टे अविहीए नाहिमंडलस्सुवरिं । हेट्ठा य जाणुमेत्तं चिट्ठइ लंबुत्तरुस्सग्गं ॥ २५३ ॥ पच्छाइऊण य थणे चोलग-पट्टेण ठाइ उस्सग्गं । दंसाइरक्खणट्ठा अहवाऽणाभोग-दोसेणं ॥ २५४॥ मेलित्तु पण्हियाओ चलणे वित्थारिऊण बाहिरओ। काउस्सग्गं एसो बाहिरउड्डी मुणेयव्वो ॥ २५५ ॥ अंगुढे मेलविउं वित्थारिय पण्हिआउ बाहिति । काउस्सग्गं एसो भणिओ अभितरुद्धित्ति ॥ २५६ ॥ कप्पं वा पट्टे वा पाउणिउं संजइव्व उस्सग्गं । ठाइ य खलिणं व जहा रयहरणं अग्गओ काउं ॥ २५७ ॥ भामेइ तह य दिट्ठि चलचित्तो वायसोव्व उस्सग्गे। छप्पइयाण भएणं कुणइ य पढें कविटुं च ॥ २५८ ॥ सीसं पकंपमाणो जक्खाइट्ठोव्व कुणइ उस्सग्गं । मूउव्व हूहुयंतो तहेव छिज्जतमाईसु ॥ २५९ ॥ अंगुलिभमुहाओऽवि अ चालितो कुणइ तहय उस्सग्गं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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