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________________ प्रवचन - सारोद्धार अथवा १४. रात्रि भोजन १५. बहुबीज १६. अनन्तकाय १७. संधान १८. द्विदल १९. बैंगन २०. अज्ञात फल २१. तुच्छफल २२. चलित रस - Jain Education International — १०७ I उत्पन्न होते हैं। खड़ी आदि खाने से आमाशय दूषित होता है यह अनेक रोगों की उत्पत्ति का कारण है । I यह भी अभक्ष्य है । अनेक जीवों की हिंसा का निमित्त होने से इहभव व परभव दोनों में दुःख का कारण बनता है जिस में बीज अधिक हो, जैसे- खसखस, पंपोटा आदि में प्रतिबीज जीव होने से अत्यधिक जीव हिंसा का कारण है । सभी अनन्तकाय अनन्त जीवों के पिंड होने से सर्वथा अभक्ष्य हैं । बिल्व, केरी, नींबू आदि के आचार अभक्ष्य हैं क्योंकि इनमें दो इन्द्रिय जीव उत्पन्न हो जाते हैं । जिसके दो दल होते हैं और जिन्हें पेलने पर तेल नहीं निकलता वे द्विदल धान्य हैं। उनसे बनी हुई वस्तुयें जैसे बड़े, पूड़ी, गट्टे आदि कच्चे दूध, दही या छाछ के साथ खाना अभक्ष्य है, कारण इसमें स जीवों की हिंसा होती है । अधिक निद्राकारक व कामोद्दीपक होने से अभक्ष्य है । जिन पुष्प फलों को कोई न जानता हो उसे कदापि नहीं खाना चाहिये क्योंकि उससे व्रतभंग व मृत्यु की संभावना है। वे जिन फल, पुष्प व पत्तों में खाना थोड़ा और फेंकना अधिक हो तुच्छ असार कहलाते हैं । जैसे, मधूक, बिल्व आदि के फल, अरणि, महुआ, शिग्रु आदि के पुष्प तथा वर्षाकाल में भाजी अभक्ष्य है। हिंसा का कारण होने से । अपक्व चौले आदि की फलियाँ जिन्हें खाने से तृप्ति नहीं होती प्रत्युत बहुत से दोष लगते हैं, अभक्ष्य हैं । जिसका स्वाद बदल गया हो, जिससे दुर्गन्ध आती हो ऐसी वस्तु अभक्ष्य है, जैसे, बासी भात आदि, दो दिन का दही, छाछ आदि । जीवाकुल हो जाने से हिंसा का कारण हैं ॥ २४५-२४६ ॥ • दयालु भव्यात्माओं के द्वारा इन बाईस अभक्ष्यों का अवश्य त्याग करना चाहिये । ५ द्वार : घोडग लया य खम्भे कुड्डे माले य सबरि बहुनियले । For Private & Personal Use Only उत्सर्ग www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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