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________________ १०६ द्वार ४ 5:30 जिसमें गुठली न बंधी हो ऐसे इमली व आम के फल, वरुण, बड़ और नीम के अङ्कर ये भी अनन्तकाय ही हैं ।। २३६-२४१ ।। अनन्तकाय के लक्षण १. जिस वनस्पति के पत्ते, तने, नाल, शाखादि की सन्धियाँ व गाँठे गुप्त हों। २. जिन शाखा व पत्तों को तोड़ने पर टुकड़ों के मुँह एकदम समतल हो। ३. जिस वनस्पति को काटने या तोड़ने पर बीच में तन्तु न निकलते हों। ४. जो वनस्पति काटकर सुखा देने पर भी जलादि सामग्री को उपलब्ध कर पुन: उग जाती हो, जैसे गडूची, आलू आदि। ५. जिस वनस्पति के मूल, स्कंध, छाल, शाखा, पत्र व पुष्पादि के संधिस्थान कुंभकार के चक्र की तरह समतल हो। ६. जिस वनस्पति के गांठ-पर्व को तोड़ने पर उसमें से सफेद चूर्ण उड़ता हुआ दिखाई देता हो । • समभङ्ग का अर्थ है क्यारी आदि में जमी हुई पपड़ी तथा चिकनी खड़ी से बना हुआ चाक ___टूटने पर जैसे समान टूटता है वैसे टूटने वाली वनस्पति अनन्तकाय है। ७. जिस वनस्पति के पत्ते क्षीर रहित अथवा सहित हों पर जिनकी नसें स्पष्ट दिखाई न दें तथा जिसकी गांठे गर्म हों। ८. क्वचित् ‘पणट्ठसन्धि' ऐसा भी पाठ है। उसका अर्थ है कि जिस वनस्पति के पत्तों के मध्य संधि सर्वथा दिखाई न देती हो । पूर्वोक्त सभी लक्षणों से युक्त वनस्पति अनन्तकायिक है ॥ २४२-२४४ ।। २२ अभक्ष्य१-५ पाँच उदुम्बर - बड़, पीपल, पिलखण, कलुबर, गूलर इन पाँचों के फल अभक्ष्य . हैं। क्योंकि इनमें मच्छर जैसे अति सूक्ष्म असंख्य जीव होते ६-७ महाविगय - मदिरा, मांस, मधु व मक्खन । इनमें तद्वर्ण के असंख्य संमूर्च्छिम जीव होते हैं। - बरफ अभक्ष्य है क्योंकि यह असंख्य अप्काय जीवों का पिंड १०. हिम ११. विष १२. करका - जहर अभक्ष्य है। इसे खाने से उदर में स्थित कृमि नष्ट हो जाते हैं। चेतना मूर्च्छित हो जाती है। - ओले जो आकाश से गिरते हैं, अभक्ष्य हैं। अप्काय जीवों का पिंड हैं। - सभी जाति की कच्ची मिट्टी। इसमें मेंढक आदि पञ्चेन्द्रिय जीव १३. मिट्टी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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