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________________ १०४ द्वार ४ ५. विस्यंदन - दही की मलाई और आटा मिलाकर बनाया हुआ द्रव्य विशेष । ऐसा द्रव्य सपादलक्ष देश में बनाया जाता है ।। २३० ।। • तेल के पाँच निवियाते १. तेल मलिका - तेल का मैल (कीटा)। २. तिलकुट्टि - गुड़-शक्कर मिलाकर तिल को कूटकर बनाया गया पदार्थ । ३. दग्धतेल - जला हुआ तेल। ४. तेल - औषध डालकर पकाये हुए तेल के ऊपर आई हुई तरी। ५. पक्वतेल - लाक्षादि द्रव्य डालकर पकाया हुआ तेल ॥ २३१ ॥ • गुड़ के पाँच निवियाते -- १. आधा पका हुआ इक्षुरस (गन्ने का रस)। - २. गुड़ का पानी। ३. शक्कर। --- ४. खांड। - ५. गुड़ की चासणी ॥ २३२ ।। • पक्वान्न के पाँच निवियाते ___ - १. जिससे पूरी कढ़ाई भर जाय, इतना बड़ा मालपूआ निकालने के बाद जितने भी मालपूए निकलें वे सभी निर्विकृतिक हैं। - २. पूड़ी आदि के तीन पावे निकालने के बाद चौथे पावे से निकलने वाली पूड़ी आदि निर्विकृतिक है। (बीच में नया घी . डाला हो, तो फिर तीन पावे निकालने आवश्यक है)। - ३. गुड़धाणादि । गुड़ आदि की चासनी बनाकर उसमें फूलियां आदि डालकर बनाये गये लड्ड आदि। - ४. जल लापसी-सुवाली आदि तलने के बाद चिकनी कढ़ाई में सेककर बनायी हुई लापसी। - ५. घी, तेल का पोता देकर बनाई हुई पूरी आदि। दूधपाक आदि विगय नहीं है किन्तु गरिष्ठ द्रव्य है। इनका उपयोग महापुरुषों को भी विकारी बना देता है तो हमारे जैसे सामान्य व्यक्तियों का तो कहना ही क्या? निवियातों के निष्कारण उपयोग से कर्म की उत्कृष्ट निर्जरा नहीं होती है। अत: निष्कारण निवियातों का उपयोग नहीं करना चाहिये । २३३ ॥ निवियातों का स्वरूप आचार्यों ने मति-कल्पना से नहीं कहा है, किन्तु आवश्यक चूर्णि में इनका वर्णन है। निवियातों के उपयोग में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि बिना किसी आगाढ़ कारण के उनका उपयोग न हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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