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प्रवचन - सारोद्धार
प्रत्याख्यान सम्बन्धी लाभ-हानि
प्रत्याख्यान के विषय में संयम धर्म से सम्बन्धित लाभ-हानि अर्थात् सारासार का ज्ञान अवश्य रखना चाहिये। जैसे- किसी ने उपवास किया पर असमाधि हो गई। तपस्वी सहन नहीं कर सकता । ऐसी स्थिति में लाभ-हानि का विचार कर उसे औषध आदि देकर समाधि पहुँचानी चाहिये । इसमें कोई दोष नहीं है । अन्यथा आर्त्त - रौद्र ध्यान में पड़कर वह दुर्गति का भागी बन सकता है । समाधि पहुँचाना कर्म निर्जरा का कारण है । एकान्त आग्रह अपकारी होने से अशुभ है। इसीलिये पच्चक्खाण में आगार रखे जाते हैं ।। २१६ ॥
विगय - १०
छः विगय
चार महाविगय
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१. दूध
२-४ दही, मक्खन व घी
५. तेल
६. गुड़ ७. शराब
८. शहद
९. मांस
१०. का
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छः विगय, चार महाविगय ।
१. दूध, २. दही, ३. घी, ४. तेल, ५. गुड़-शक्कर, ६. तलने पर फूलकर ऊपर आने वाली वस्तु, जैसे पूड़ी, खाजा आदि ।
१. मांस, २. मक्खन, ३. शराब, ४. शहद ॥ २१७ ॥ गाय, भैंस, बकरी, ऊँटडी व भेड़ का दूध । (स्त्री का दूध विगय में नहीं आता ।)
ये तीनों गाय, भैंस, बकरी व गाड़र के ही होते हैं (ऊँटडी के दूध का दही व घी नहीं बनता ।। २१८ ॥
तिल, अलसी, कुसुंभा व सरसों का तेल विगय है । (मूँगफली, खसखस, नारियल, एरण्डी, सीसम का तेल विगय नहीं है ) ॥ २१९ ॥
द्रव एवं पिंड दोनों प्रकार का गुड़ विगय है ।
(अ) लकड़ी - इक्षु रस आदि से बना हुआ । (ब) भात, कोदरी आदि के चूर्ण से बना हुआ ।
(अ) मधु मक्खियों से बनाया हुआ ।
(ब) कुन्तिका से निर्मित ( कुन्तिका एक प्रकार की भ्रमरी है)
(स) भ्रमर से निर्मित ॥ २२० ॥
(अ) जलचर (मछली आदि का )
(ब) स्थलचर (बकरी, भैंस, सूअर, खरगोश, हिरण आदि का) । (स) खेचर (लावा, चिड़िया आदि का) अथवा
(द) चर्म, चर्बी और रक्त इन तीनों का भी मांस में समावेश होता है।
घी या तेल में तलने के बाद जो वस्तु शब्द करती हुई फूलकर ऊपर आती है, वह पक्वान्न विगय है। उसके तीन पावे निकालने के बाद शेष जितने भी पावे निकलते हैं, वे निर्विकृतिक कहलाते
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