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द्वार ४
इलायची आदि । तुलसीपत्र, पिण्डालु, जीरा, शहद, पीपल, सूंठ, गुड़, काली मिर्च, अजमोद,
हरड़े, बहेड़ा, आंवला आदि अनेक प्रकार की स्वादिम वस्तुयें हैं ॥ २१० ॥ अशन आदि में विगयों का समावेश१. अशन–दूध, दही, घी, तेल, मिठाई, मक्खन आदि । २. पान -मदिरादि । ३. खादिम -गुड़धानादि में डाले गये गूंद के फूले आदि। ४. स्वादिम -गुड़, शहद आदि ।। २११ ॥ प्रत्याख्यान शुद्धि के कारण१. फासिअं
- प्रत्याख्यान सूत्रों के अर्थ को अच्छी तरह जानने वाले साधु या
श्रावक, सूर्योदय से पूर्व ही आत्मसाक्षी से प्रभुप्रतिमा व स्थापनाचार्य के समक्ष स्वयं प्रत्याख्यान करले। तत्पश्चात सत्रसम्मत विधि से संयमनिष्ठ गुरु के पास वन्दनपूर्वक, राग द्वेष, विकथा से रहित होकर, उपयोगपूर्वक, हाथ जोड़कर मन्द स्वर से गुरु के शब्दों
का उच्चारण करते हुए पुन: पच्चक्खाण ग्रहण करें। २. पालिअं
- ग्रहण किये हुए प्रत्याख्यान का उपयोगपूर्वक पालन करना। ३. सोहिअं
- पच्चक्खाण पूर्ण होने के बाद गुरु आदि की गोचरी में से बची
हुई गोचरी करना। इससे प्रत्याख्यान शोभित होता है। ४. तीरिअं
- प्रत्याख्यान का काल पूर्ण हो जाने पर भी कुछ समय ठहरकर
बाद में प्रत्याख्यान पालना। ५. किट्टिअं
-- पच्चक्खाण का काल पूर्ण होने के बाद भोजन करते समय यह
स्मरण करना कि मैंने पच्चक्खाण लिया था वह पूर्ण हो चुका
है, अब मैं भोजन करूँगा। ६. आराहिअं
पूर्वोक्त सभी प्रकारों से युक्त पच्चक्खाण मैंने पूर्ण किया है। क्योंकि जिनेश्वर परमात्मा की यही आज्ञा है। जिनेश्वर परमात्मा की आज्ञा सहित व प्रमाद रहित प्रत्याख्यान महती कर्मनिर्जरा का कारण होता है अत: ऐसे प्रत्याख्यान करने में अवश्य प्रयत्न
करना चाहिये ॥ २१२-२१५ ॥ प्रत्याख्यान 'आगारपूर्वक' ही करना चाहिये, अन्यथा भङ्ग हो जाने पर महान् दोष लगता है। कहा है—नियम भङ्ग करने पर, भगवान की आज्ञा की महती विराधना होने से अशुभ कर्मों का बंधन होता है। प्रत्युत परिणामविशुद्धि का कारण होने से भगवदाज्ञा का पालन, महान् कर्मनिर्जरा करने वाला है।
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