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प्रवचन-सारोद्धार
समय जो स्वगत रसादि गुणों का व स्वादकर्ता के संयमादि
गुणों का नाश करे, वह स्वादिम है । अशनादि शब्दों का यह निर्वचन कल्पित नहीं है, किन्तु व्याकरण सिद्ध है, भ्रमर, सिंह आदि शब्दों की तरह (जो भ्रमणशील है वह भ्रमर । हिंसा करे वह सिंह) ये शब्द ‘पृषोदरादिगण' से सिद्ध हैं।
प्रश्न-व्युत्पत्ति के भेद से खाद्य पदार्थों का अशनादि के रूप में चार भेद करना उचित नहीं है। यद्यपि ओदन के लिए भोजन करने का, काञ्जी आदि के लिये पीने का, खजूर आदि के लिये खाने का तथा गड़ादि के लिये स्वाद लेने का प्रयोग होता है तथापि सभी शब्द भोजनार्थक होने से वास्तव में एकार्थक ही हैं। अत: अशन-पान आदि अलग-अलग चार भेद करना व्यर्थ है।
समाधान-आपका कथन सत्य है पर विशेष ज्ञानरहित बालजीवों के लिये खाद्य पदार्थों का अशनादि के रूप में वर्गीकरण आवश्यक है। इससे वे पदार्थों का ज्ञान व विवक्षित द्रव्यों का त्याग सुगमता से कर सकते हैं। व्यवहार में भी देखा जाता है कि भोजनक्रिया समान होने पर भी भिन्न-भिन्न पदार्थों के लिये भिन्न-भिन्न क्रिया पदों का प्रयोग होता है जैसे, भात, रोटी आदि के लिये कहा जाता है कि - इन्हें भात आदि का भोजन कराओ। पानक के लिये-इन्हें दाख आदि का रस पिलाओ। गुड़धानी
आदि के लिये-इन्हें गुड़धानी, खजूर, नारियल आदि खिलाओ। तांबूल आदि के लिये-इन्हें सुगन्धित तांबूल आदि का आस्वादन कराओ। वैसे यहाँ भी खाद्य पदार्थों का अशनादि के रूप में वर्गीकरण करना न्याय संगत है ।। २०२-२०६ ॥
• अशन- भात (चावल) आदि धान्य, सत्तु = भुंजे हुए यव, चना आदि का चूर्ण, मूंग आदि
कठोल, राव आदि पेया, खाद्य विशेष, मालपुए, लड्डु, सूंखड़ी, घेवर, लापसी, सीरा आदि पक्वान्न, खीर, दही, घी, छाछ, कढ़ी, रसाला-पेय पक्वान्न विशेष (जो दही, खांड, शहद, घी, काली मिर्च से बनाया हुआ व कपूरादि सुगन्धी द्रव्यों से सुगन्धित होता है), सूरण, अदरक आदि वनस्पतियों से निर्मित व्यंजन, अनेक प्रकार की रोटी, पूड़ी, खाजा, ठोठिका, कुल्लरिका, इडरिका, चूरमा आदि पक्वान्न विशेष ।। २०७॥ पान-काञ्जी, यव, गेहूँ अनेक प्रकार के चावल, कोदरी आदि का धोवण, अनेक प्रकार की मदिरा, सिरके आदि, कुआ, तालाब नदी आदि का जल, ककड़ी, तरबूज, खजूर, दाख, इमली आदि का जल, इक्षुरस आदि पीने योग्य वस्तु पान है ।। २०८ ॥ खादिम–yजे हुए चने, गेहूँ आदि । दाँतों को व्यायाम देने वाले गूंद, चने, फूली, चिरौंजीदाने, गंडेरी, मिश्री, खजूर, नारियल, दाख, अखरोट, बादाम, ककड़ी, आम, कटहल, केले, अमरूद आदि फल । ‘दन्त' का अर्थ देशविशेष में प्रसिद्ध गुड़ादि डालकर बनाया हुआ 'द्रव्य विशेष' भी है जिसे चबाने से दाँतों का व्यायाम हो जाता है। जिसे खाने से भूख पूर्ण रूपेण तो समाप्त नहीं होती, पर कुछ देर के लिये शान्त अवश्य हो जाती है, वे पदार्थ खादिम कहलाते हैं ॥ २०९॥ • स्वादिम–दाँतों को स्वच्छ बनाने वाला दातून (नीम, बबूल आदि की लकड़ी), पान, सुपारी,
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