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द्वार ४
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आदि के द्वारा सूर्य ढक जाने से, समय का सही ज्ञान न हो पाने के कारण पोरिसी पच्चक्खाण आने से पूर्व ही पार लिया हो तो भी पच्चक्खाण भङ्ग नहीं होता। हाँ, पच्चक्खाण पालने के बाद खाते-खाते भी यदि मालूम पड़ जाय कि समय पूर्ण नहीं हुआ है तो उसी समय रुक जाना चाहिये । समयपूर्ण होने पर ही पुन: खाना चाहिये। समय पूर्ण नहीं हुआ, ऐसा जानते हुए भी यदि खाता रहे तो प्रत्याख्यान भङ्ग होता है।
४. दिशामोह-पूर्व को पश्चिम समझकर अपूर्ण पोरिसी में पच्चक्खाण पाल ले तो भी पच्चक्खाण भङ्ग नहीं होता है। शेष पूर्ववत् ।
५. साधुवचन-'उद्घाट पौरुषी' ऐसा साधु का वचन सुनकर एक प्रहर पूर्ण हो गया ऐसा समझकर प्रत्याख्यान पाल ले तो भी पच्चक्खाण भङ्ग नहीं होता। शेष पूर्ववत् ।
६. सर्वसमाधिप्रत्यय-पोरिसी पच्चक्खाण करने के बाद अचानक पेट, सिर इत्यादि में असह्य पीड़ा होने पर आर्त्त-रौद्र ध्यान से बचने के लिये अपूर्ण पच्चक्खाण में औषध, पथ्य आदि लेना पड़े तो भी पच्चक्खाण भङ्ग नहीं होता।
सर्वसमाधि = आर्त्त-रौद्रध्यान का निराकरण, प्रत्यय = कारण अर्थात् आर्त रौद्र ध्यान का निराकरण ही कारण है जिसमें वह ‘सर्वसमाधिप्रत्यय' है।
पोरिसी पच्चक्खाण करने वाले वैद्य, डॉक्टर आदि को रोगी की समाधि के लिये घर से जल्दी जाना हो और वे पच्चक्खाण आने से पूर्व भोजनादि कर लें तो कोई दोष नहीं है किन्तु खाना आधा खाया हो और मालूम पड़ जाय कि साधु या रोगी समाधि पूर्वक मर गया तो उसी समय खाना बन्द कर दे । प्रत्याख्यान का समय पूर्ण होने पर ही पुन: खाये। इस प्रकार न करने से प्रत्याख्यान भङ्ग होता
है।
३. पुरिमड्ड प्रत्याख्यान
दिन के पूर्वार्द्ध तक का पच्चक्खाण अर्थात् दो प्रहर तक का पच्चक्खाण । इसमें ७ आगार हैं। छ: आगार पूर्ववत् ७वाँ महत्तरागारेणं--पच्चक्खाण से होने वाली निर्जरा की अपेक्षा अधिक निर्जरा के लिये पच्चक्खाण पूर्ण होने से पूर्व पार लेना (ग्लान, चैत्य, संघादि का ऐसा कार्य, जो दूसरों से सम्भव न हो, जिसे एक मात्र वही व्यक्ति करने में समर्थ हो)। नवकारसी आदि पच्चक्खाण में यह आगार नहीं है, क्योंकि नवकारसी का समय प्रमाण अति अल्प है और इस पच्चक्खाण में समय अधिक होने से 'महत्तर' का आगार रखा गया है।
अवड प्रत्याख्यान-अपराह्न के आधे भाग तक का पच्चक्खाण अवड्ड कहलाता है। अर्थात् तीन प्रहर तक का पच्चक्खाण। शेष सभी पुरिमड्ड की तरह है। ४. एकासन प्रत्याख्यान
इसमें आठ आगार हैं। एक आसन से बैठकर एक वक्त भोजन करना (जिसमें नाभि के नीचे का भाग हिलना नहीं चाहिये। चार आगार पूर्ववत् (i) अनाभोग (ii) सहसाकार (iii) महत्तर (iv) सर्वसमाधिप्रत्यय व शेष आगार निम्न हैं।
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