________________
प्रवचन-सारोद्धार
१. नवकारसी-दो आगार- (१) अनाभोग और (२) सहसाकार।
प्रश्न-नवकारसी पच्चवखाण में काल का कोई प्रमाण नहीं बताया गया है अत: यह अद्धा-पच्चक्खाण कैसे कहलायेगा? लगता है यह संकेत प्रत्याख्यान हो।
उत्तर-आपकी बात सत्य है। नवकारसी पच्चक्खाण का अर्थ है नमस्कार सहित पच्चक्खाण । यहाँ सहित शब्द महूर्त का निर्देशक है। अत: इसका अर्थ होता है नमस्कार सहित, मुहूर्त-युक्त पच्चक्खाण । इस प्रकार काल प्रमाण युक्त होने से नवकारसी का पच्चक्खाण भी अद्धा पच्चक्खाण कहलाता है।
प्रश्न—नवकारसी पच्चक्खाण में मुहूर्त शब्द का कहीं भी उल्लेख नहीं है तो वह किसी विशेषण का विशेष्य कैसे बन सकता है? जब आकाश-पुष्प स्वयं ही सत्य नहीं है तो उसकी सुगन्ध की चर्चा कैसे हो सकती है?
उत्तर- नवकारसी पच्चक्खाण अद्धा पच्चक्खाण के अन्तर्गत है। पोरिसी पच्चक्खाण काल प्रमाण युक्त है। अत: उसका पूर्वभावी नवकारसी पच्चक्खाण भी काल प्रमाण-युक्त होना चाहिये। नवकारसी अल्प आगार वाला होने से अल्पकालिक होना चाहिये । यद्यपि यहाँ नवकारसी का काल प्रमाण नहीं बताया, फिर भी अ
र भा अध्याहार से उसका अल्प में अल्प एक मुहूर्त का काल अवश्य समझना। प्रश्न-नवकारसी पच्चक्खाण का काल एक मुहूर्त ही क्यों लिया?
उत्तर-नवकारसी पच्चवखाण में दो ही आगार हैं। अत: काल प्रमाण भी अल्प ही होना चाहिये और पच्चक्खाण की दृष्टि से मुहूर्त सबसे अल्प काल है। दूसरी बात यह है कि काल (मुहूर्त) पूर्ण होने पर भी यदि नवकार-मंत्र न गिना हो तो यह पच्चक्खाण पूर्ण नहीं होता। वैसे नमस्कार गिन लिया हो किन्तु पच्चक्खाण का काल पूर्ण न हुआ हो तो भी पच्चक्खाण पूर्ण नहीं होता, क्योंकि यह पच्चक्खाण नमस्कार सहित व कालप्रमाणयुक्त है। इससे सिद्ध होता है कि 'एक मुहूर्त प्रमाण नमस्कार सहित प्रत्याख्यान' नवकारसी पच्चक्खाण है।
प्रश्न—इस पच्चक्खाण में सूर्योदय का प्रथम मुहूर्त ही क्यों लिया?
उत्तर-पच्चक्खाण में 'सूरे उग्गए' ऐसा पद होने से प्रथम मुहूर्त ही लिया गया है, 'आगमवचनात् ।' सूर्योदय से लेकर नमस्कार-सहित एक मुहूर्त का पच्चक्खाण नवकारसी है। पच्चक्खाण देते समय गुरु ‘पच्चक्खाइ' बोलते हैं और शिष्य ‘पच्चक्खामि'। अन्त में गुरु कहते हैं 'वोसिरे' और शिष्य कहता है 'वोसिरामि'। नवकारसी पच्चक्खाण चार प्रकार के आहार का त्याग-रूप है क्योंकि यह रात्रि-भोजन के पच्चक्खाण की पूर्तिरूप है। पच्चक्खाण भङ्ग न हो जाय इसलिये इसमें दो आगार रखे गये हैं
(i) अनाभोग = सर्वथा विस्मृति और (ii) अकस्मात् ।। ... ... . . . २. पौरुषी पच्चक्खाण
जिस समय धूप में खड़े होने पर अपनी छाया पुरुष प्रमाण अर्थात् स्व-शरीर प्रमाण पड़े, उस समय तक का पच्चक्खाण पौरुषी कहलाता है। अर्थात् सूर्योदय से एक प्रहर तक अशन आदि चारों आहार का त्याग करना।
इसके छ: आगार हैं- १. अनाभोग, २. सहसाकार पूर्ववत् , ३. प्रच्छन्नकाल-बादल धूल...पर्वत
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org