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द्वार ४
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परिमाण और स्त्री का आहार अठावीस कवल परिमाण माना गया है। पुरुष के १-२-३ से इकत्तीस कवल तक और स्त्री के १-२-३ से सत्ताईस कवल तक कवल-परिमाण पच्चक्खाण होता है।
(स) इतने घर से ही आहार ग्रहण करना. यह गह-परिमाण कत पच्चक्खाण है। . (द) संसृष्ट आदि भिक्षा का परिमाण करना भिक्षा परिमाण पच्चक्खाण है।
(च) अमुक द्रव्य ही भिक्षा में ग्रहण करना, यह द्रव्य-परिमाणकृत-पच्चक्खाण है ।। १९७ ।।
८. निरवशेष-अशन-भात, रोटी, लड्डु, खाजा आदि, पान-खजूर, दाख आदि का पानीखादिम–नारियल, फल, गुड़धाना आदि, स्वादिम–इलायची, कपूर, लौंग, सुपारी, हरड़े, पान आदि चारों प्रकार के आहार का सर्वथा त्याग। यह पच्चक्खाण विशेषत: अन्त समय में किया जाता है ।। १९८ ।।
९. साकेत-कित = घर, जिसके घर है ऐसे गृहस्थ के योग्य पच्चक्खाण साकेत पच्चक्खाण । यह अर्थ केवल गृहस्थ से सम्बन्धित है। इसका दूसरा अर्थ है.---केत = चिह्न, अर्थात् चिह्न सहित पच्चक्खाण साकेत पच्चक्खाण है। यह साधु और श्रावक दोनों के विषय में समान है। यह पच्चक्खाण चिह्न के भेद से आठ प्रकार का है। नवकारसी, पोरसी आदि का पच्चक्खाण पूर्ण हो गया, किन्तु अभी तक भोजन सामग्री तैयार नहीं है, अत: एक क्षण भी पच्चक्खाण बिना व्यर्थ न चला जाय, इ माशय से आठ चिह्नों में से किसी एक चिह्न का संकल्प कर विरति में रहना । जैसे जब तक अंगठा, मुट्ठी या गांठ खुली न करे, घर में प्रवेश न करे, शरीर का पसीना न सूख जाय, इतने श्वासोश्वास न ले ले, बर्तन आदि पर लगे जल-बिन्दु न सूख जाय, जलता हुआ दीपक न बुझ जाए, तब तक का पच्चक्खाण ।
पूर्वोक्त पच्चक्खाण नवकारसी आदि पच्चक्खाण के साथ भी हो सकते हैं और अलग से भी
कते हैं जैसे भोजन आदि करने के बाद अभिग्रह के रूप में ये पच्चवरखाण किये जा सकते हैं। मुनियों के भी ये पच्चक्खाण होते हैं, जैसे पोरिसी आदि का पच्चक्खाण आ गया, किन्तु गुरु अभी तक मंडली में नहीं आये हों अथवा गृहस्थ के आ जाने से गोचरी नहीं की जा सकती हो, ऐसी स्थिति में बिना पच्चक्खाण के एक क्षण भी व्यर्थ न चला जाय अत: साधु भी अङ्गष्ठसहियं आदि का पच्चक्खाण करते हैं ॥ १९९-२०० ।।
१०. अद्धा पच्चक्खाण-अद्धा = काल, मुहूर्त, समय। काल परिमाण सहित पच्चक्खाण, अद्धा-पच्चक्खाण कहलाता है।
इसके १० भेद हैं- १. नवकारसी, २. पोरिसी, ३. पुरिमड्ड, ४. एकासण, ५. एकलठाणा, ६. आयंबिल, ७. उपवास, ८. दिवसचरिम, ९. अभिग्रह, १०. नीवि।
प्रश्न—एकाशनादि के पच्चक्खाण स्वयं काल-परिमाण युक्त न होने से अद्धा-पच्चक्खाण कैसे कहलायेंगे?
उत्तर—यद्यपि एकाशनादि का पच्चक्खाण स्वयं काल परिमाण युक्त नहीं है तथापि अद्धा-प्रत्याख्यान के बिना नहीं किये जाते, अत: वे भी उन्हीं के अन्तर्गत माने जाते हैं ॥ २००-२०१ । ।
प्रत्येक प्रत्याख्यान आगार (अपवाद) सहित करना चाहिये। अन्यथा पच्चक्खाण भङ्ग होने की सम्भावना रहती है। किस पच्चक्खाण में कितने आगार होते हैं? यह बताया जाता है
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