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________________ प्रवचन-सारोद्धार २१ २. अतीत-पर्युषणादि पर्व में करने योग्य तपश्चर्या कारणवश पर्युषणादि बीतने के बाद करना अतीत तप है। ३. कोटि सहित-जिसमें दो तप के छोर मिलते हों, अर्थात् दो तप की संधि से युक्त पच्चक्खाण कोटि सहित कहलाते हैं, जैसे उपवास के पारणे दूसरे उपवास का पच्चक्खाण करना अथवा उपवास के पारणे आयंबिल, नीवि आदि का पच्चक्खाण करना। दोनों तप समान हों तो पच्चक्खाण समकोटि कहलाता है, जैसे उपवास की पूर्णाहुति के समय दूसरे उपवास का पच्चक्खाण लेना। समान न हो तो विषम कोटि कहलाता है, जैसे-उपवास की पूर्णाहुति के समय आयंबिल, नीवि इत्यादि का पच्चक्खाण लेना ।। १९१ ॥ ४. नियन्त्रित पच्चक्खाण-जो पच्चवखाण, रोगी हो चाहे निरोगी सभी को नियत समय पर निश्चित रूप से करना पड़ता हो वह नियन्त्रित पच्चक्खाण है। यह पच्चक्खाण चौदह पूर्वी, जिनकल्पी व प्रथम संघयणवालों के समय में ही होता है। वर्तमान में यह पच्चक्खाण नहीं होता। प्रश्न-यह पच्चक्खाण उस समय में जिनकल्पी और चौदहपूर्वी ही करते थे या अन्य भी? उत्तर-उस समय यह पच्चवखाण प्रथम संघयणी, स्थविर-कल्पी मुनि भी करते थे किन्तु जिन-कल्प और चौदह-पूर्व के विच्छेद के साथ यह पच्चक्खाण भी विच्छिन्न हो गया है ।। १९२-१९३ ॥ ५. साकार-आकार (मर्यादा) सहित पच्चक्खाण। आहार आदि का त्याग कर देने पर भी महत्त्वपूर्ण कारणों से आहार आदि ग्रहण करना पड़े तो भी प्रत्याख्यान भङ्ग नहीं होता। ६. अनाकार-अनाभोग और सहसाकार इन दो आगारों को छोड़कर शेष सभी आगारों से रहित पच्चवखाण। अकाल के समय में भिक्षा न मिलने पर यह पच्चक्खाण (अनशन) करके शरीर त्याग किया जाता है। जिससे शरीर का निर्वाह हो वह वृत्ति है। कांतारवृत्ति का अर्थ है जैसे जंगल में घूमने पर भी भिक्षा नहीं मिलती वैसे ब्राह्मण आदि अदाताओं से युक्त तथा शासन द्वेषी लोकों से भावित सिणवल्ली आदि गांवों में भिक्षा न मिलने पर यह पच्चक्खाण किया जाता है । असाध्य रोग में 'आदि' शब्द से सिंहशावक आदि के द्वारा कृत उपद्रव के समय भी यह अनाकार पच्चक्खाण किया जाता है। • अनाभोग और सहसा ये दो आगार तो इस पच्चक्खाण में भी हैं क्योंकि इन अपवादों का सेवन इच्छापूर्वक नहीं होता, पर अकस्मात् हो जाता है ॥१९४-१९६ ।। ७. परिमाण-व्रत-दात, कवल, घर, भिक्षा, द्रव्य आदि के परिमाण पूर्वक आहार आदि का त्याग करना, परिमाणकृत पच्चक्खाण कहलाता है। (अ) दात-हाथ या पात्र में से सतत धाराबद्ध जो भिक्षा गिरे वह एक दात । बीच में धार टूट जाय और पुन: गिरे यह दूसरी दात । इस प्रकार आहार-पाणी के विषय में दात का परिमाण करना, यह दत्ती परिमाण पच्चक्खाण कहलाता है। (ब) कवल-परिमाण-छोटे नींबू-प्रमाण भोजनपिण्ड अथवा जितना पिण्ड आसानी से मुँह में समा सके, जिसे खाने पर मुख-विकृत न बने, इतना भोजन पिण्ड कवल कहलाता है। कवल का परिमाण करके आहार आदि करना, कवल-परिमाण-पच्चक्खाण है। सामान्यत: पुरुष का आहार बत्तीस कवल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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