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________________ ९० जिसके पत्ते दूध वाले या दूध रहित हों पर जिसकी नसें गुप्त हों, जिसका सन्धि स्थान उष्म हो ऐसी वनस्पति अनन्तकाय समझना चाहिये ॥ २४४ ॥ अभक्ष्य – ५ उदुंबर, ४ विगय, बर्फ, जहर, गड़े, सभी प्रकार की मिट्टी, रात्रिभोजन, बहुबीज, अनन्तकाय, आचार, दहीवड़े, बेंगन, अज्ञातफल, तुच्छ फल एवं चलितरस - ये २२ अभक्ष्य हैं । २४५ - २४६ ।। -विवेचन प्रति अविरति से प्रतिकूल । आ = मर्यादा । आख्यान = कथन । अर्थात् मर्यादापूर्वक आगार रखते हुए अविरति का त्याग करना प्रत्याख्यान है 1 प्रत्याख्यान इसके दो भेद हैं। मूलगुण प्रत्याख्यान व उत्तरगुण प्रत्याख्यान । साधु के लिये पञ्च महाव्रत, श्रावक के लिये पाँच अणुव्रत । साधु के लिये पिंडविशुद्धि आदि, श्रावक के लिये गुणव्रत व शिक्षाव्रत । = मूलगुण प्रत्याख्यान उत्तरगुण प्रत्याख्यान द्वार ४ प्रत्याख्यान लेने की विधि शिष्य विनयपूर्वक, उपयोगपूर्वक एवं मौनपूर्वक गुरु से प्रत्याख्यान ग्रहण करे । प्रत्याख्यान लेने वाले और प्रत्याख्यान देने वाले दोनों ही प्रत्याख्यान के स्वरूप को अच्छी तरह से जानने वाले होने चाहिये। यहाँ चतुर्भंगी बनती है १. शिष्य ज्ञानी, गुरु ज्ञानी २. शिष्य अज्ञानी, गुरु ज्ञानी ३. शिष्य ज्ञानी, गुरु अज्ञानी ४. शिष्य अज्ञानी, गुरु अज्ञानी • प्रथम भांगा शुद्ध है 1 • दूसरा भांगा भी शुद्ध है । (यदि ज्ञानी गुरु अपने अज्ञानी शिष्य को संक्षेप में समझाकर पच्चक्खाण करावे तो शुद्ध है अन्यथा अशुद्ध है) 1 • तीसरा भांगा अशुद्ध है । (तथाविध ज्ञानी गुरु के न मिलने पर उनके प्रति बहुमान रखते हुए गुरु के सम्बन्धी पिता, माता, काका, मामा, भ्राता और शिष्यादि यद्यपि वे अज्ञ हैं तथापि उनकी साक्षी से प्रत्याख्यान करे तो तीसरा भांगा भी शुद्ध है) • चौथा भांगा अशुद्ध ही है । प्रतिदिन उपयोगी होने से यहाँ सर्वप्रथम उत्तरगुण के प्रत्याख्यानों का वर्णन किया जाता ।। १८७-१८८ ।। है उत्तरगुण के प्रत्याख्यान के दस प्रकार १. भावी - पर्युषण पर्व में करने योग्य अट्ठम आदि तप उस समय गुरु, गच्छ, ग्लान, शैक्षक - नूतन दीक्षित, तपस्वी आदि की सेवा-शुश्रूषा का काम होने से पर्युषण से पहले करना अनागत तप है ।। १८९-१९० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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