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________________ ८८ प्रत्याख्यान पूर्ण होने पर गुरु द्वारा प्रदत्त शेष भोजन करना शोभित पच्चक्खाण है । प्रत्याख्यान का समय पूर्ण हो जाने पर भी कुछ समय पर्यन्त प्रत्याख्यान में रहना तीरित प्रत्याख्यान है ।। २१४ ।। गोचरी के समय, किये हुए पच्चक्खाण की स्मृतिपूर्वक आहार करना कीर्तित पच्चक्खाण है । स्पर्शित आदि छः कारणों द्वारा पूर्ण किया गया पच्चक्खाण आराधित कहलाता है ।। २१५ ।। स्वीकृत व्रत का भङ्ग करना महान अपराध है । अल्प भी व्रत का पालन लाभ का कारण है। अतः लाभालाभ का विवेक करते हुए पच्चक्खाण में आगार रखना आवश्यक है || २१६ ॥ दूध, दही, मक्खन, घी, तेल, गुड़, शराब, शहद, मांस और तली हुई वस्तु ये दश विगय हैं ॥ २१७ ।। द्वार ४ गाय, भैंस, उंटड़ी, बकरी और घेटी (भेड़) के भेद से दूध पाँच प्रकार का है। उंटड़ी को छोड़कर दही आदि चार प्रकार के ही होते हैं ।। २१८ ।। तिल, अलसी, कुसुंभा और सरसों के भेद से तेल भी चार प्रकार का है । डोला आदि का तेल विगय रूप नहीं है ।। २९९ ।। गुड़ विगई के दो भेद हैं-द्रव गुड़ और कठिन गुड़। शराब के भी दो भेद हैं- गन्ने के रस से तथा आटे से बनी हुई शराब। शहद के तीन भेद हैं- मधुमक्खी, कीट एवं भ्रमर से निर्मित शहद ।। २२० । मांस तीन प्रकार का है- जलचर, स्थलचर एवं खेचर सम्बन्धी मांस अथवा चर्म रूप, चरबी रूप और रक्त रूप मांस । घी और तेल में छन्- छन् शब्द करते हुए जो वस्तु तली जाती है, वह भाषा में कडाई - विग अथवा अवगाह विगय कहलाती है। प्रथम के तीन पावे (घाण) ही कडाइ - विगय माने जाते हैं, उसके पीछे के नहीं ।। २२१ ।। चार अङ्गुल प्रमाण ऊपर तैरते हुए दूध दही और मदिरा से मिश्रित भात आदि संसृष्ट कहलाते हैं, विगय रूप नहीं माने जाते। इससे अल्प भी अधिक होने पर वे विगय रूप हो जाते हैं । प्रवाही गुड़, घी और तेल से एक अङ्गुल प्रमाण मिश्रित कूर आदि संसृष्टद्रव्य माने जाते हैं ।। २२२ ॥ अर्ध अल प्रमाण शहद या मांस के रस से मिश्रित वस्तु संसृष्टद्रव्य हैं, विगय रूप नहीं होती । गुड़, मांस और मक्खन के आर्द्रामलक प्रमाण टुकड़ों से मिश्रित भात आदि विगय रूप नहीं माने जाते ।। २२३ ॥ दस विगय, तीस विकृतिगत, बावीस अभक्ष्य और बत्तीस अनंतकाय का यथावस्थित वर्णन करता हूँ, जिज्ञासु आत्मा सुने ।। २२४ ॥ दूध, दही, तेल, मक्खन, घी, गुड़, शहद, मांस, शराब और पक्वान्न दस विगय हैं। इनके क्रमशः पाँच, चार, चार, चार, चार, दो, तीन, तीन, दो और एक भेद हैं ।। २२५ ।। चावल आदि डालकर बनाई गई खीर आदि निर्वीर्य हो जाने के कारण विकृतिगत (निवियाता रूप) हो जाती है। अतः उसे द्रव्य ही माना जाता है, विगय नहीं माना जाता। खाजा आदि तलने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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