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प्रवचन-सारोद्धार
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९. केत = घर। जो घर सहित है वह गृहस्थ है। उसका पच्चक्खाण साकेत पच्चक्खाण कहलाता है। अथवा केत = चिह्न । चिह्न सहित जो पच्चक्खाण वह साकेत पच्चक्खाण है।
अंगूठी, ग्रन्थि, मुट्ठी, प्रस्वेद बिन्दु, श्वासोच्छ्वास, पानी की बूंदे, दीपक आदि का अभिग्रह करना साकेत पच्चक्खाण है। यह पच्चक्खाण नवकारसी, पोरसी आदि पच्चक्खाणों के साथ भी किया जाता है और केवल अभिग्रह के रूप में भी किया जा सकता है। १९९-२०० ॥
१०. अद्धा अर्थात् काल, मुहूर्त, प्रहर आदि के परिमाण से युक्त पच्चक्खाण दसवां अद्धा पच्चक्खाण है। इस प्रकार पच्चक्खाण के दश भेद समझना चाहिये ।। २०१।।
नवकारसी, पोरिसी, पुरिमड्ड एकाशन, एकलठाणा, आयंबिल, उपवास, दिवसचीरम-भवचरिम, अभिग्रह एवं विगय-दश प्रकार का अद्धापच्चक्खाण है॥ २०२॥
नवकारसी के दो, पोरिसी के छ:, पुरिमट्ट के सात, एकाशन के आठ, एकलठाणा के सात, आयंबिल के आठ, उपवास के पाँच, पाणस्स के छ:, चरम पच्चक्खाण के चार, अभिग्रह के पाँच या चार, नीवि के आठ अथवा नौ आगार होते हैं। अभिग्रह के सम्बन्ध में यह विशेष है कि प्रावरण अभिग्रह के पाँच आगार हैं और शेष अभिग्रह के चार आगार हैं ।। २०३-२०५ ॥
मक्खन, घी व तेल में तली हुई वस्तु, दही, मांस, घी, गुड़ आदि कठिन द्रव्य में नौ आगार हैं तथा प्रवाही विगय जैसे दूध, तेल आदि में आठ आगार हैं ।। २०६ ।।
ओदन आदि अनाज, सत्तू आदि चूर्ण (आटा) , मूंग आदि कठोल, राब आदि खाद्य पदार्थ, खाजा, खीर आदि पक्वान्न, आदु आदि सब्जियाँ, मालपूआ आदि अशन आहार रूप है।। २०७॥ ___काजी, जौ आदि का पानी, अनेक प्रकार की सुरा, कुआं, बावड़ी, तालाब आदि का जल, ककड़ी, तरबूज आदि का पानी, पानक रूप है ॥ २०८ ॥
सेके हुए गेहूँ, चणा आदि, दाँतों के लिये हितकारी गूंद खांड गन्ना आदि, खजूर, नारियल, द्राक्ष आदि, ककड़ी, आम, फणस आदि फल-ये सब खादिम हैं ॥ २०९॥ ।
दातुन (नीम-बब्बूल आदि का) , पान, सुपारी आदि अनेक प्रकार के मुखवास, तुलसी के पत्ते, अदरक, जीरा, हल्दी आदि शहद पीपल सूंठ आदि अनेक प्रकार के स्वादिम हैं॥ २१०।।
सरक विगय का पानाहार में, पक्वान्न में डाले हुए गूंद के फूले आदि का खादिम में, गुड़ शहद आदि का खादिम में तथा शेष सात विगय (घी, तेल, दूध, दही, मक्खन, पक्वान्न और मांस) का अशन में समावेश होता है ।। २११ ॥
___स्पर्शित, पालित, शोभित, तीरित, कीर्तित एवं आराधित प्रत्याख्यान विशुद्ध होता है। इसके लिये प्रयत्न करना चाहिये ।। २१२ ।।
उचित काल में विधिपूर्वक ग्रहण किया गया पच्चक्खाण स्पर्शित कहलाता है। सतत उपयोग और सतर्कतापूर्वक पालन किया गया पच्चक्खाण पालित कहलाता है ॥ २१३ ।।
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