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तुच्छफलं चलियरसं वज्जह वज्जाणि बावीसं ॥ २४६ ॥
-गाथार्थ
प्रत्याख्यान के १० प्रकार - १. भविष्यकाल सम्बन्धी, २. भूतकाल सम्बन्धी, ३. कोटि सहित, ४. नियन्त्रित, ५. आगार सहित, ६. आगार रहित, ७. परिमाण युक्त, ८. निरवशेष, ९. संकेत युक्त तथा १०. अद्धाप्रत्याख्यान - इस प्रकार दशविध प्रत्याख्यान होता है।
संकेत पच्चक्खाण आठ प्रकार का तथा अद्धा प्रत्याख्यान दश प्रकार का है । १८७ - १८८ । दशविध पच्चक्खाण का स्वरूप बताते हैं
द्वार ४
१. भावी पच्चक्खाण का स्वरूप इस प्रकार है - पर्युषण पर्व में अट्ठम करना आवश्यक है। पर उस समय आचार्य, गण, ग्लान, नूतन दीक्षित तपस्वी आदि की वैयावच्च का महान कार्य होने से अट्टम तप करना शक्य न हो तो पर्युषण से पूर्व कर लेना अनागत तप है I
२. इन्हीं कारणों से पर्युषण पर्व बीतने के बाद अट्ठम आदि तप करना अतीत तप है ।
१८९-१९० ।
३. आज प्रातःकाल उपवास का पच्चक्खाण किया हो, दूसरे दिन प्रातः काल पुनः उपवास का पच्चक्खाण करना कोटि सहित पच्चक्खाण है । यहाँ दो प्रत्याख्यान का छोर परस्पर मिलता है अतः यह कोटि सहित पच्चक्खाण कहलाता है । १९१ ।
४. स्वस्थ रहूँ या अस्वस्थ रहूँ, दिन में मुझे विशेष पच्चक्खाण करना ही है - इस प्रकार नियमपूर्वक पच्चक्खाण करना नियन्त्रित पच्चक्खाण है । १९२ ॥
नियन्त्रित पच्चक्खाण सर्वकालिक नहीं होता पर जिस काल में चौदह पूर्वधर, जिनकल्पी तथा प्रथम संघयणी होते हैं उस काल में ही होता है, अतः वर्तमान काल में इस प्रत्याख्यान का विच्छेद हो गया है ।। ९९३ ॥
५-६. ‘महत्तरागारेणं' आदि आगारों से युक्त पच्चक्खाण साकार - आगार सहित पच्चक्खाण है और इन आगारों से रहित पच्चक्खाण आगार रहित पच्चक्खाण है ।। १९४ ।।
किन्तु आगार रहित पच्चक्खाण भी 'अन्नत्थणाभोगेणं' एवं 'सहसागारेणं' ये दो आगार तो अवश्य ही बोलना चाहिये । कारण, घास, जल की बूँदें आदि मुँह में अचानक डालने की या पड़ने की सम्भावना रहती है। ये दो आगार होने पर भी 'महत्तरागारेणं' आदि आगार रहित होने से तथाविध पच्चक्खाण आगार रहित कहलाता है ।। १९५-१९६ ।।
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७. दत्ति, कवल, घर, भिक्षा और द्रव्य के परिमाण वाला, पच्चक्खाण परिमाणकृत पच्चक्खाण है ॥ १९७ ॥
८. जिस पच्चक्खाण में अशन, पान, खादिम और स्वादिम– इन चारों प्रकार के आहार का त्याग होता है वह निरवशेष पच्चक्खाण कहलाता है ।। ९९८ ।।
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