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द्वार ४
आगारविरहियं पुण भणियमणागारनामेति ॥ १९४ ॥ किंतु अणाभोगो इह सहसागारो अ दुन्नि भणिअव्वा। जेण तिणाइ खिविज्जा मुहंमि निवडिज्ज वा कह वि ॥ १९५ ॥ इय कयआगार-दुगंपि सेसआगाररहिअमणागारं । दुब्भिक्खवित्तिकंतारगाढ-रोगाइए कुज्जा ॥ १९६ ॥ दत्तीहि व कवलेहि व घरेहिं भिक्खाहिं अहव दव्वेहिं । जो भत्तपरिच्चायं करेइ परिमाण कडमेयं ॥ १९७ ॥ सव्वं असणं सव्वं च पाणगं खाइमंपि सव्वंपि। वोसिरइ साइमंपि हु सव्वं जं निरवसेसं तं ॥ १९८ ॥ केयं गिहंति सह तेण जे उ तेसिमिमं तु साकेयं । अहवा केयं चिंधं सकेयमेवाहु साकेयं ॥ १९९ ॥ अंगुट्ठी-गंट्ठि-मुट्ठि-घरसेयुस्सासथिद्ग-जोइक्खे। पच्चक्खाणविचाले किच्चमिणमभिग्गहेसुवि य ॥ २०० ॥ अद्धा कालो तस्स य पमाणमद्धं तु जं भवे तमिह । अद्धापच्चक्खाणं दसमं तं पुण इमं भणियं ॥ २०१॥ नवकारपोरिसीए पुरिमड्डेकासणेगठाणे य। आयंबिलऽभत्तढे चरिमे य अभिग्गहे विगइ ॥ २०२ ॥ दो चेव नमोक्कारे आगारा छच्च पोरसीए उ। सत्तेव य पुरिमड्ढे एक्कासणगंमि अद्वैव ॥ २०३ ॥ सत्तेगट्ठाणस्स उ अट्ठेव य अंबिलंमि आगारा। पंचेव अब्भत्तटे छप्पाणे चरिम चत्तारि ॥ २०४॥ पंच चउरो अभिग्गहि निव्विइए अट्ठ नव य आगारा । अप्पाउरणे पंच उ हवंति सेसेसु चत्तारि ॥ २०५ ॥ नवणीओगाहिमगे अद्दवदहिपिसियघयगुडे चेव। नव आगारा एसिं सेसदवाणं च अद्वैव ॥ २०६ ॥ असणं ओयण सत्थुगसग्गजगाराइ खज्जगविही य।
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