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________________ प्रवचन-सारोद्धार ८१ किस प्रतिक्रमण में कितने खामणे? दैवसिक रात्रिक पाक्षिक चातुर्मासिक | सांवत्सरिक ३ या सभी m mm 999 ग्रन्थकार आवश्यक चूर्णि वृद्ध परम्परापाक्षिकवृत्तौ जघन्यत: उत्कृष्टत: ३-५ ३-५ ३-५ ३-५ ३-५ सभी सभी सभी पूर्वोक्त संख्या संबुद्धा, प्रत्येक और समाप्ता तीनों स्थानों की समझना ॥ १८३-१८६ ॥ ४द्वार: प्रत्याख्यान भावि अईयं कोडिसहियं च नियंटियं च सागारं । विगयागारं परिमाणवं निरवसेसमट्ठमयं ॥ १८७ ॥ साकेयं च तहऽद्धा पच्चक्खाणं च दसमयं । संकेयं अट्ठहा होइ अद्धायं दसहा भवे ॥ १८८ ॥ होही पज्जोसवणा तत्थ य न तवो हवेज्ज काउं मे। गुरुगणगिलाणसिक्खगतवस्सिकज्जाउलत्तेण ॥ १८९ ॥ इअ चिंतिअ पुव्वं जो कुणइ तवं तं अणागयं बिंति । तमइक्कंतं तेणेव हेउणा तवइ जं उड्डूं ॥ १९० ॥ गोसे अब्भत्तटुं जो काउं तं कुणइ बीयगोसेऽवि। इय कोडीदुग-मिलणे कोडीसहियं तु नामेण ॥ १९१ ॥ हटेण गिलाणेण व अमुगतवो अमुगदिणंमि नियमेणं । कायव्वोत्ति नियंटिय-पच्चक्खाणं जिणा बिंति ॥ १९२ ॥ चउदसपुविसु जिणकप्पिएसु पढमंमि चेव संघयणे। एय वोच्छिन्नं चिय थेरावि तया करेसी य ॥ १९३ ॥ महतरयागाराई-आगारेहिं जुयं तु सागारं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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