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________________ द्वार ३ :::::: 2001-02 आदेश माँगे, गुरु कहे पडिलेह, तब खमासमण देकर मुहपत्ति पडिलेहण करे, वन्दना, संबुद्धा खामणा अर्थात् पाँच गीतार्थों को खामणा, पाक्षिक आलोचना (अतिचार), गुरु पाक्षिक में चतुर्थभक्त की आलोचना दें, (चातुर्मासिक में छट्ठ और सांवत्सरिक में अट्ठम की)। तत्पश्चात् वांदणा, प्रत्येक खामणा, वांदणा, गुरु की आज्ञा से एक मुनि खड़ा रहकर पाक्षिक सूत्र बोले (शेष मुनि खड़े-खड़े मौन से सुने यदि कोई बाल-वृद्ध खड़ा न रह सके तो खमासमण देकर गुरु की अनुमति से नीचे बैठे और प्रमाद रहित, बढ़ते शुभ-भावों से सूत्र सुने), बैठकर प्रतिक्रमण सूत्र बोले, फिर खड़े होकर ‘करेमि भंते' सूत्र बोलकर बारह लोगस्स का कायोत्सर्ग करे, प्रकट लोगस्स कहे, मुहपत्ति पडिलेहण, वांदणा, पाँच बड़ों को खामणा ॥ १८१-१८२ ॥ चातुर्मासिक और वार्षिक प्रतिक्रमण की भी यही विधि है, मात्र निम्न अन्तर है चातुर्मासिक प्रतिक्रमण सावंत्सरिक प्रतिक्रमण संबुद्धाखामणा ७ संबुद्धाखामणा ७ काउस्सग्ग लोगस्स-२० काउस्सग्ग लोगस्स-४० ऊपर १ नवकार इन तीनों प्रतिक्रमण में श्रुतदेवता के काउस्सग्ग के स्थान में भुवनदेवता का काउस्सग्ग किया जाता है। शेष विधि दैवसिक प्रतिक्रमण की तरह समझना। प्रतिक्रमण में लोगस्स संख्या (चंदेसु निम्मलयरा तक) दैवसिक रात्रिक पाक्षिक चातुर्मासिक वार्षिक लोग्गस श्लोक २० १२५ g ४० २५०+२ नवकार के १००८ पाद १०० ३०० चंदेसु निम्मलयरा तक लोगस्स के ६ श्लोक होते हैं। दैवसिक प्रतिक्रमण में चार लोगस्स का काउस्सग्ग होता है, अत: ६५ x ४ = २५ श्लोक । इसी तरह रात्रि आदि प्रतिक्रमण में भी समझना । वार्षिक प्रतिक्रमण में ४० लोगस्स का काउस्सग्ग है, इसको ६ से गुणा करने पर ६, x ४० = २५० होते हैं। ८ उच्छ्वास वाले नवकार के दो श्लोक उसमें मिलाने से २५२ श्लोक होते हैं। १००८ पाद में १००० पाद लोगस्स के और ८ पाद नवकार के होते हैं। नवकार के ८ पाद होने से उसके दो श्लोक माने जाते हैं क्योंकि १ श्लोक के ४ पाद होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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