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________________ प्रवचन - सारोद्धार करना, आलोचना करके पुनः वन्दन देना, प्रत्येक खामणा करके वन्दन देकर क्रमश: पक्खीसूत्र एवं श्रमणसूत्र बोलना। फिर अभ्युत्थान, कायोत्सर्ग, मुहपत्ति पडिलेहण, वन्दन, समाप्ति वन्दन देना । यह विधि पाक्षिक प्रतिक्रमण की है ।। १८१-१८२ ॥ किस प्रतिक्रमण में कितने लोगस्स का काउस्सग्ग होता है ? – दैवसिक प्रतिक्रमण में चार, रात्रिक प्रतिक्रमण में दो, पाक्षिक प्रतिक्रमण में बारह, चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में बीस और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में चालीस लोगस्स का कायोत्सर्ग किया जाता है ।। १८३ ॥ पच्चीस, साढ़ा बारह, पचहत्तर, एक सौ पच्चीस और दो सौ बावन श्लोक प्रमाण कायोत्सर्ग क्रमशः दैवसिक, रात्रिक आदि प्रतिक्रमण में होते हैं ।। १८४ ।। दैवसिक प्रतिक्रमण में सौ, रात्रिक प्रतिक्रमण में पचास, पाक्षिक प्रतिक्रमण में तीन सौ, चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में पाँच सौ तथा सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में एक हजार आठ श्वासोश्वास प्रमाण कायोत्सर्ग होता है ।। १८५ ।। किस प्रतिक्रमण में कितने खामणे होते हैं ? – दैवसिक, चातुर्मासिक तथा सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में क्रमशः तीन, पाँच तथा सात खामणा होते हैं ।। १८६ ॥ -विवेचन प्रतिक्रमण ( प्रतिकूलं क्रमणं प्रतिक्रमणं) त्रिविध प्रतिक्रमण (अतीत, अनागत, वर्तमान काल की अपेक्षा से) ७७ = शुभ योग में से अशुभ योग में गये हुए आत्मा का पुनः शुभ योग में आना, क्षायोपशमिक भाव से औदयिक भाव में वर्तमान आत्मा का पुन: ' क्षायोपशमिक' भाव में आना, प्रतिक्रमण है । प्रति वापस, क्रमणं = लौटना । पापाचरण से रहित मुनि की मोक्षफलदायी शुभ योगों में प्रवृत्ति 'प्रतिक्रमण' है 1 कसायाण पडिक्कमणं जोगाण य अप्पसत्थाणं ॥ ' मिथ्यात्व, अविरति, कषाय व अशुभ योगों से निवृत्त होना प्रतिक्रमण है । १. निन्दा करने से - अशुभ योग निवृत्तिरूप 'अतीत विषयक प्रतिक्रमण' होता है । २. संवर करने से - अशुभ योग निवृत्तिरूप वर्तमान विषयक प्रतिक्रमण होता है । ३. प्रत्याख्यान करने से - अशुभ योग निवृत्तिरूप 'अनागत विषयक' प्रतिक्रमण होता है । Jain Education International प्रश्न- प्रतिक्रमण अतीतकालीन पाप का प्रायश्चित्त रूप है, जैसा कि कहा है- 'अईयं पडिक्कमामि पडुपन्नं संवरेमि अणागयं पच्चक्खामि' अर्थात् अतीत का प्रतिक्रमण होता है, वर्तमानकालीन पाप को रोकने के लिये संवर है तथा भावी पाप से बचने के लिये प्रत्याख्यान किया जाता है तो आप प्रतिक्रमण को त्रैकालिक कैसे कह रहे हैं ? उत्तर—यहाँ ‘प्रतिक्रमण' शब्द का अर्थ अशुभ योग की निवृत्ति मात्र है । कहा है 'मिच्छत्तपडिक्कमणं तहेव अस्संजमे य पडिक्कमणं । For Private & Personal Use Only = www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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