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प्रवचन - सारोद्धार
३. द्वार
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आदि का व्यवहार हो सके ऐसे मुनि सांभोगिक हैं । इसके विपरीत असांभोगिक कहलाते हैं ।
यदि आने वाले सांभोगिक हैं, तो आचार्य को पूछकर स्थित मुनि उन्हें वन्दन करे (ज्येष्ठ हो तो) । यदि आने वाले असांभोगिक हैं तो पहले आचार्य को वन्दन कर उनकी अनुमति लेकर पश्चात् आगन्तुक मुनियों को वन्दन करें या उनसे वन्दन करावें । ६. गुरु को आलोचना देते समय वन्दन करना ।
७. बहुत आगार वाले एकासण आदि के पच्चक्खाण का संवरण रूप तिविहारादि का पच्चक्खाण लेते समय अथवा वन्दन करके गुरु से नवकारसी, पोरसी आदि का पच्चक्खाण ले लिया हो परन्तु अजीर्ण आदि के कारण उपवास की भावना हो जाय तो उपवास का पच्चक्खाण लेते समय वन्दन करना ।
८. अनशन - संलेखना करते समय वन्दन करना ।
इनमें से कुछ वन्दन नियत हैं और कुछ अनियत हैं । तथाविध कारण से किये जाते हैं अन्यथा नहीं ।। १७४ ॥
प्रतिक्रमण
चिइवंदण उस्सग्गो पोत्तियपडिलेह वंदणालोए । सुत्तं वंदण खामण वंदणय चरितउस्सग्गो ॥ १७५ ॥ दंसणनाणुस्सग्गो सुयदेवयखेत्तदेवयाणं च। पुत्तियवंदण थुइतिय सक्कत्थय थोत्त देवसियं ॥ १७६ ॥ मिच्छादुक्कड पणिवाय- दंडयं काउसग्गतियं करणं । पुत्तिय वंदण आलोय सुत्त वंदणय खामणयं ॥ १७७॥ वंदणयं गाहातियपाढो छम्मासियस्स उस्सग्गो । पुत्तिय वंदण नियमो थुइतिय चिइवंदणा राओ ॥ १७८ ॥ णवरं पढमो चरणे दंसणसुद्धीय बीय उस्सग्गो । अनाणस्स तईओ नवरं चिंतेइ तत्थ इमं ॥ १७९ ॥ तइए निसाइयारं चिंतइ चरिमंमि किं तवं काहं ? |
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