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________________ प्रवचन-सारोद्धार ७३ १६. तेणिय १७. पडिणीय १८. रुट्ठ १९. तज्जिय २०. सढ २१. हीलिय २२. विपलियउंचिय २३. दिट्ठमदिट्ठ - दूसरा कोई श्रावक या साधु न देखे इस तरह चोरी छुपे वन्दन करना। दूसरे यदि देखेंगे तो कहेंगे कि–'अहो ! ये विद्वान होते हुए भी वन्दन करते हैं। इससे मेरी अपभ्राजना होगी।' - आहार, नीहार के समय वन्दन करना, प्रत्यनीक वन्दन है। - क्रोधावेश में वन्दन करना, रुष्ट वन्दन है। - तुम कठपुतली की तरह हो, न तो वन्दन करने से खुश होते हो, न नाराज। फिर तुम्हें वन्दन करने से क्या लाभ? इस प्रकार तर्जना करते हुए वन्दन करना अथवा 'अभी लोगों के बीच मेरे से वन्दन करवालो, किन्तु अकेले में बताऊँगा' इस प्रकार मस्तक, भृकुटी, अङ्गली आदि से तर्जना करते हुए वन्दन करना । लोकों में विश्वास पैदा करने के लिये, बिना भाव से कपटपूर्वक वन्दन करना, शठ वन्दन कहलाता है । - हे गणि ! वाचक ! ज्येष्ठार्य ! आपको वन्दन करने से क्या लाभ है? इस प्रकार हीलना करते हुए वन्दन करना। - विकथा करते हुए वन्दन करना यह 'विपरीत कुंचित वन्दन' है। - वन्दन करते समय, सबके पीछे जाकर बैठ जाना और कोई देखे तो वन्दन करना अन्यथा बैठे रहना, यह ‘दृष्टादृष्ट' वन्दन है। - अहो-कार्य-काय' वगैरह आवर्त ललाट के मध्य में न करते हए बायें, दायें भाग पर करना, 'शृंग-वन्दन' है। जहाँ 'सिंगं पण कुम्भपासेहिं' ऐसा पाठ है वहाँ कुंभ का अर्थ ललाट होने से यही अर्थ समझना। - राज्य के 'कर' की तरह वन्दन को गुरु का 'कर' समझकर करना। अरे ! संयम लिया इसलिये लौकिक कर से तो मुक्त हो गये किन्तु अरिहंत के कर से अभी भी मुक्त नहीं हुए ऐसा समझ कर वन्दन करना। - आवर्त के समय रजोहरण तथा मस्तक को हाथ से स्पर्श करना चाहिये किन्तु ऐसा न करना । - चतुर्भंगी-- १. रजोहरण स्पर्श करना, मस्तक स्पर्श करना। - २. रजोहरण स्पर्श करना, मस्तक स्पर्श नहीं करना । - ३. मस्तक स्पर्श करना, रजोहरण स्पर्श नहीं करना । . २४. सिंग २५. कर २६. तम्मोयण २७. आलिट्ठमणालिट्ठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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