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________________ प्रवचन-सारोद्धार ७१ ३. पविद्ध - १. 'द्रव्य से गर्वित, भाव से नहीं। वायुजन्य पीड़ादि के कारण शरीर से गर्वित पर भाव से विनम्र । - २. भाव से गर्वित, द्रव्य से नहीं। भाव से गर्वित, शरीर से विनम्र। --- ३. द्रव्य से गर्वित, भाव से गर्वित। शरीर व भाव दोनों से गर्वित। - ४. द्रव्य से नहीं, भाव से भी नहीं—शरीर-भाव दोनों से विनम्र चौथा भांगा सर्वशुद्ध है। दूसरा व तीसरा भांगा सर्वथा अशुद्ध । प्रथम भांगा शुद्धाशुद्ध । कोई उदर-पृष्ठ में शूलादि से पीड़ित होने के कारण द्रव्य से स्तब्ध रहता हो फिर भी भाव से अक्कड़ न हो तो प्रथम भङ्ग भी शुद्ध है। यदि निष्कारण स्तब्ध रहे तो अशुद्ध है। जैसे- तैसे वन्दन करना अथवा आधा वन्दन करके भग जाना। जैसे-एक गाड़ी वाला घरेलू सामान लेकर दूसरे गाँव जा रहा था। वहाँ पहुँच कर उसने मालिक से कहा कि गाँव आ गया है। अत: अपनी शर्त पूरी हो गई। मालिक ने कहा-थोड़ी देर प्रतीक्षा करो जब तक मैं सामान रखने का उचित स्थान खोज लूँ। लेकिन वह सामान रास्ते में ही उतारकर भग गया, वैसे साधु भी वन्दन अधूरा छोड़कर भग जाय । • साथ में बैठे हुए सभी आचार्यों को एक ही विधि से वन्दन करना अथवा घुटनों पर हाथ टेककर अव्यक्त सूत्रोच्चारपूर्वक वन्दन करना। - टिड्डी की तरह आगे-पीछे कूदते हुए वन्दन करना । - अङ्कुश से जैसे हाथी को वश किया जाता है, वैसे सोये हुए, खड़े या काम में व्यग्र आचार्य या गुरु को चोलपट्टक या हाथ पकड़ कर अवज्ञा से खींचते हुए जबर्दस्ती वन्दन करना । आशातना का कारण होने से ऐसा नहीं करना चाहिये, किन्तु प्रणाम करके कहे कि 'उपविशन्तु भगवन्तो येन वन्दनकं प्रयच्छामि' भगवन् ! आप विराजिये, जिससे कि मैं वन्दन कर सकूँ। ऐसा कहकर गुरु को बिठायें, फिर वन्दन करे। आवश्यक वृत्ति मते-दोनों हाथों में अङ्कश की तरह रजोहरण पकड़कर वन्दन करना वह 'अङ्कश वन्दन' कहा है। ४. परिपिडिय ५. टोलगइ ६. अंकुस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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