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प्रवचन-सारोद्धार
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३. कृष्ण और वीरक शालवी का दृष्टान्त
कृष्ण-वासुदेव का वीरक नामक सेवक था। उसका नियम था कि कृष्ण महाराजा का मुँह देखने के बाद ही भोजन करना। चातुर्मास में कृष्ण जी महल से बाहर नहीं निकलते थे। अत: वीरा को उनके दर्शन के अभाव में भूखा रहना पड़ा। इससे वह अत्यन्त कृश हो गया। चार महीने बाद जब कृष्ण के दर्शन हुए तो उन्होंने वीरा की दुर्बलता का कारण पूछा। वीरा ने अपनी बात बताई। यह सुनकर कृष्ण ने उसे महल में बे-रोक-टोक आने की अनुमति प्रदान कर दी।
( बोध को प्राप्त कर कृष्ण अपनी विवाह योग्य पत्रियों को पूछते कि ‘रानी बनना है या दासी'। जो राजकुमारी कहती कि मुझे रानी बनना है उसे भगवान नेमिनाथ के पास दीक्षा दिलाते। किन्त एक दिन माता से सीख पाई हई एक राजकमारी ने कष्णजी के पछने पर कहा कि 'मैं तो दासी बनूँगी।' यह सुनकर उसे शिक्षा देने हेतु कृष्ण ने उसकी शादी सालवी के साथ कर दी और वीरा को समझा दिया कि 'राजकुमारी' से घर का पूरा काम कराना, कृष्ण की आज्ञानुसार वीरा ने भी ऐसा ही किया। कोमलांगी राजकुमारी थोड़े दिनों में ही दुःखी हो गई व पिता के पास आकर दुखड़ा रोने लगी कि “कृपया, मुझे वहाँ से मुक्त करा दीजिये, मैं भी रानी बनूँगी।” श्रीकृष्ण ने वीरक से अनुमति लेकर, उस राजकुमारी को भी बड़े महोत्सव पूर्वक भगवान नेमिनाथ के पास दीक्षा दिलाई।
एक बार नेमिनाथ परमात्मा पुन: द्वारिका में पधारे । कृष्णजी अपने परिवार के साथ भगवान को वन्दन करने गये। कृष्णजी ने अठारह हजार मुनियों को वन्दन किया। वीरक ने भी कृष्ण की शर्म से उनके साथ सभी को वन्दन किया।
कृष्ण का वन्दन भाव-कृतिकर्म था। क्योंकि इससे उनके चार नरक के बन्धन टूटे। क्षायिक सम्यक्त्व या तीर्थकर नामकर्म का लाभ हुआ। वीरक का वन्दन द्रव्य-कृतिकर्म था क्योंकि उसका वन्दन अनुकरण रूप था।
४. विनयकर्म में पालक और शाम्ब का दृष्टान्त
द्वारिका नगरी में भगवान नेमिनाथ का पदार्पण हुआ। कृष्ण जी ने अपने पुत्रों को कहा कि 'जो प्रभु को सर्वप्रथम वन्दन करेगा उसे मैं अपना अश्वरत्न इनाम में दूँगा।' यह सुनकर कृष्णजी के पुत्र शाम्ब कुमार ने प्रात: जल्दी उठकर शय्या में बैठे-बैठे ही भगवान को वन्दन किया किन्तु राजकुमार पालक, अश्वरत्न को पाने के लालच में प्रात:काल जल्दी उठकर अश्वरत्न पर बैठकर भगवान के पास, वन्दन करने गया। जब कृष्ण जी भगवान को वन्दन करने गये तो उन्होंने पूछा- 'हे प्रभु ! आज आपको सर्वप्रथम वन्दना किसने की?' प्रभु ने कहा—'सर्वप्रथम द्रव्य वन्दना पालक ने की और सर्वप्रथम भाव-वन्दना शाम्ब ने की।' भगवान के मुँह से शाम्ब कमार की वन्दना वास्तविक जानकर कृष्ण ने अपना अश्वरत्न उसे दिया। यहाँ पालक का द्रव्य विनय कर्म और शाम्ब कुमार का भाव विनय कर्म है।
५. पूजा कर्म पर दो राजसेवकों का दृष्टांतएक राजा के दो सेवक थे। उनमें गाँव की सीमा को लेकर परस्पर विवाद चल रहा था। उसका
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