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२. अवसन्न- दस प्रकार की साधु समाचारी के पालन में शिथिल ।
अवसन्न के दो प्रकार हैं- (१) सर्वतः और (२) देशतः ।
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द्वार २
सर्वतः - जहां 'उउबद्ध' ऐसा पाठ है वहां अर्थ है कि शेष काल (चातुर्मास के सिवाय) में भी पाट आदि का उपयोग करने वाला सर्वतः अवसन्न है । अवबद्ध पीठफलक तथा स्थापना- भोजी, सर्वतः अवसन्न हैं ।
(i)
अवबद्ध-पीठफलक-अवबद्ध अर्थात् छोटे-छोटे बाँस व लकड़ी के टुकड़ों को डोरी से बाँध कर बनाया हुआ संथारा । चातुर्मास में एक लकड़ी से निष्पत्र पाट न मिलने पर यदि इसका उपयोग करना पड़े तो उसे १५ दिन में एक बार खोलकर अवश्य पडिलेहणा करनी चाहिये, किन्तु जो ऐसा नहीं करता है वह 'अवबद्ध-पीठफलक' कहलाता है। अथवा- सारे दिन संथारा बिछाकर रखने वाला अथवा संथारा नहीं बिछाने वाला भी अवबद्धपीठफलक है 1
(ii)
स्थापना भोजी – साधु के निमित्त रखी हुई वस्तु को लेने वाला । देशत: - प्रतिक्रमण, पडिलेहण तथा दशविध समाचारी का पालन न करने वाला, न्यूनाधिक करने वाला या गुरु के भय से करने वाला ।
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प्रतिक्रमण, पड़िलेहण, स्वाध्याय, गमनागमन का कायोत्सर्ग आदि विधिपूर्वक न करने वाला, न्यूनाधिक करने वाला, नहीं करने वाला या प्रतिषिद्ध काल में करने वाला, प्रमादवश अथवा सुखशीलता से गौचरी नहीं जाने वाला, उपयोग- शून्य भ्रमण करने वाला, अकल्प्य वस्तु ग्रहण करने वाला, मैंने क्या किया ? मुझे क्या करना चाहिये ? करने योग्य मैं क्या नहीं करता ? इस प्रकार का शुभ-ध्यान न करने वाला, प्रत्युत अशुभ ध्यान करने वाला, मंडली में गौचरी नहीं करने वाला, कौए, सियार इत्यादि को देकर गौचरी करने वाला, संयोजना आदि दोषों से युक्त भोजन करने वाला, 'देशत: अवसन्न' कहलाता है ।
अन्यमते - गुरु के पास पच्चक्खाण न करने वाला, गुरु के सामने कठोर वचन बोलने वाला, उपाश्रय से बाहर आते-जाते निस्सीहि, आवस्सही न बोलने वाला, गमनागमन सम्बन्धी काउस्सग्ग न करने वाला अथवा दोषयुक्त करने वाला, बैठते या सोते संडासा प्रमार्जनादि न करने वाला, समाचारी के विपरीत आचरण करने वाला, गुरु द्वारा प्रायश्चित्त देने पर गुरु के सामने कठोर वचन बोलने वाला, गुरु का आदेश 'तहत्ति' करके स्वीकार न करने वाला, लगे हुए दोषों का मिच्छा मि दुक्कड़ न देने वाला, बिना पडिलेहण-प्रमार्जन के वस्तु को उठाने / रखनेवाला, गुरु की वैयावच्च न
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