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प्रवचन - सारोद्धार
द्रव्ययापना — मिश्री, दाख, गुड़ आदि उत्तम औषधियों के द्वारा शरीर को समाधि पहुँचाना।
भावयापना- इन्द्रिय-संयम व मन की शान्ति के द्वारा शरीर को समाधि पहुँचाना।
(vi) क्षामणा - क्षमापना करना । इसके भी दो भेद हैं:- द्रव्यक्षमापना व भावक्षमापना । द्रव्यक्षमापना —दुर्भाव से युक्त व्यक्ति का वर्तमान भव सम्बन्धी हानि से
(अ)
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डर कर क्षमापना करना ।
भावक्षमापना - भवभीरु, मोक्षाभिलाषी आत्मा की क्षमापना ।
गुरुवन्दन करने से क्या लाभ मिलता है जिसके लिये हम इतना कष्ट उठाते हैं ? इस प्रश्न के
समाधान हेतु अगला उपद्वार है ।। ९९ ।।
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५. छः गुण— गुरुवन्दन के छ: लाभ हैं—
(१) गुरु का विनय
(३) गुरुजनों की पूजा
(५) श्रुतधर्म की आराधना
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(ब)
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(२) मानभङ्ग
(४) तीर्थंकर की आज्ञा का पालन (६) सिद्धपद
वन्दन क्रिया से अभिमान का नाश होता है (जाति आदि के मद से उन्मत्त बना आत्मा न देव को मानता है, न गुरु को नमस्कार करता है, न किसी की प्रशंसा ही करता है) ।
वन्दन- क्रिया से गुरुजनों की भाव- पूजा होती है ।
वन्दन-क्रिया से कल्याण का मूल कारण जिनाज्ञा की आराधना होती है क्योंकि भगवान् ने विनय को ही धर्म का मूल कहा है ' विणय मूलो हि धम्मो ।'
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श्रुत-धर्म की आराधना होती है, क्योंकि श्रुतज्ञान वन्दनपूर्वक ग्रहण किया जाता है । ६. वन्दन क्रिया से आत्मा परम्परया सिद्ध बनती है । यहाँ वन्दन का अर्थ हैवन्दनरूप- विनय ।
उक्तञ्च परमर्षिभिः - भंते! समणं वा माहणं वा वंदमाणस्स वा पज्जुवासमाणस्स वंदणा पज्जुवासणा य किं फला पन्नत्ता ? गोयमा ! सवणफला, से णं सवणे किं फले पण्णत्ते, गोयसा ! नाणफले, सेणं नाणे किं फले ? गोयमा ! विन्नाणफले, विन्नाणे पच्चक्खाणफले, पच्चक्खाणे संजमफले, संजमे अणण्यफले (अनाश्रव), अणहए तवफले, तवे वोदाणफले, वोदाणे अकिरियाफले, अकिरिया सिद्धिगड्गमणफलत्ति ।
क्लेशप्रद अष्टकर्मों का नाश करने वाला विनय है। गुरुवन्दन से विनय धर्म की आराधना होती है ।
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