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________________ द्वार २ ५६ 348:046 अप्रशस्त इच्छा-स्त्री आदि का अनुराग। यहाँ वन्दन के सम्बन्ध में प्रशस्त भाव-इच्छा उपयोगी है। (ii) अनुज्ञापना-इसके भी इच्छा की तरह छ: भेद हैं। प्रथम दो सुगम होने से नहीं बताये। अनुज्ञापना का अर्थ है- सम्मति, आज्ञा आदि। (अ) द्रव्य-अनुज्ञापना-इसके तीन भेद हैं- लौकिक, लोकोत्तर व कुप्रावचनिक । * लौकिक अनुज्ञा-सचित्त-अचित्त व मिश्र तीन प्रकार की है: . अश्व-हाथी आदि सचित्त जीवों की अनुज्ञा...प्रथम । . मोती-रत्न आदि अचित्त पदार्थों की अनुज्ञा....द्वितीय। . विविध अलङ्कारों से विभूषित स्त्री-विषयक अनुज्ञा....तृतीय। * लोकोत्तर अनुज्ञा-इसके भी पूर्ववत् तीन भेद हैं . शिष्य आदि की आज्ञा देना....प्रथम । . वस्त्रादि की आज्ञा देना....द्वितीय। . वस्त्रादि सहित शिष्यादि की अनुज्ञा....तृतीय। * कुप्रावनिक-अनुज्ञा यह भी पूर्ववत् तीन प्रकार की हैक्षेत्र-अनुज्ञापना–जितने क्षेत्र की अनुज्ञा दी जाय अथवा जिस क्षेत्र में । अनुज्ञा की व्याख्या की जाय वह क्षेत्र-अनुज्ञापना है। काल-अनुज्ञापना—जिस काल की आज्ञा दी जाय अथवा जिस काल में अनुज्ञा की व्याख्या की जाय। (द) भाव-अनुज्ञापना—'आचारांग' आदि आगमग्रन्थों की अनुज्ञा देना। यहाँ यही अनुज्ञा उपयोगी है। (iii) अव्याबाध-जहाँ किसी प्रकार की बाधा न हो, वह अव्याबाध वन्दन है। बाधा के दो प्रकार हैं-द्रव्यबाधा और भावबाधा। (अ) द्रव्य-बाधा-खड्ग आदि शस्त्रों के द्वारा होने वाले आघात से जन्य वेदना। (ब) भाव-बाधा-मिथ्यात्वादि से जन्य भवदुःख। . पूर्वोक्त दोनों प्रकार की बाधा जहाँ नहीं है ऐसा वन्दन अव्याबाध वन्दन है। वन्दन की अव्याबाधता 'बहुसुभेण भे' से स्पष्ट होती है। (iv) यात्रा-शुभ-प्रवृत्ति । इसके दो भेद हैं-द्रव्य यात्रा और भाव यात्रा। (अ) द्रव्य यात्रा–तापस आदि मिथ्यादृष्टियों की क्रिया में प्रवृत्ति । (ब) भाव यात्रा-मुनियों की अपनी-अपनी क्रिया में प्रवृत्ति । (v) यापना-निर्वाह करना। इसके भी दो भेद हैं- द्रव्ययापना और भावयापना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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