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________________ प्रवचन - सारोद्धार (i) मन की एकाग्रता पूर्वक वन्दन करना मनगुप्ति । (ii) सूत्रों का अस्खलित उच्चारण करते हुए वन्दन करना वचनगुप्ति । (iii) दोष रहित आवर्त करना....कायगुप्ति । • प्रवेश - गुरु के मर्यादित क्षेत्र में वन्दना के लिये प्रवेश करना। वन्दन करते हुए प्रवेश दो बार होता है (i) अवनत यथाजात २ १ प्रथम वन्दन के समय गुरु की अनुज्ञा लेकर 'निसीहिआए' बोलते हुए गुरु के 'अवग्रह' में प्रवेश करना... १ प्रवेश । (ii) इसी प्रकार दूसरे वन्दन के समय प्रवेश करना... २ प्रवेश । • निष्क्रमण - गुरु के अवग्रह में से बाहर निकलना, 'निष्क्रमण' आवश्यक है । यह वन्दन में एक बार ही होता है कारण प्रथम बार 'आवर्त्त' करके 'आवस्सिआए' बोलते हुए अवग्रह से बाहर निकलना होता है । पर दुबारा वन्दन में आवर्त करने के बाद अवग्रह में रहकर ही सूत्र बोलना होता है । यही विधि मार्ग है । कुल आवश्यक— Jain Education International 1 (ब) (स) (द) आवर्त १२ शिरनमन गुप्ति ४ ३ प्रवेश २ ५५ ४. षट्स्थान - १. इच्छा, २. अनुज्ञापना, ३. अव्याबाध, ४. यात्रा, ५. यापना व ६. क्षामणा - गुरु वन्दन के ये छ: स्थान हैं । (i) इच्छा—'इच्छामि...' इत्यादि बोलकर शिष्य सर्वप्रथम गुरु को वन्दन करने की अपनी इच्छा प्रकट करता है अतः इच्छा शिष्य का प्रथम वन्दन स्थान है । नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव के भेद से इच्छा के छः प्रकार हैं । नाम- इच्छा और स्थापना- इच्छा सुगम होने से यहाँ नहीं बताई गई है। (अ) द्रव्य - इच्छा-- सचित्त-शिष्यादि, अचित्त- उपधि आदि व मिश्र - उपधि सहित शिष्यादि की अभिलाषा अथवा अनुपयुक्त शिष्य का 'इच्छामि खमासमण....' आदि बोलना । शेष भेद बताये हैं निष्क्रमण १ कुल २५ For Private & Personal Use Only क्षेत्र- इच्छा-मगध आदि क्षेत्र विषयक इच्छा । काल-इच्छा— रात-दिन आदि कालविषयक इच्छा । जैसे--अभिसारिका, चोर व परस्त्रीगामी रात को पसन्द करते हैं । नट-नर्तक आदि सुकाल चाहते हैं। पर, अनाज के व्यापारी अकाल की कामना करते हैं । भाव- इच्छा— भाव-इच्छा के दो भेद हैं- प्रशस्त इच्छा व अप्रशस्त इच्छा । प्रशस्त इच्छा - ज्ञानादि को पाने की इच्छा । www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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