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हाउं परस्स दिट्ठि वंदंते तेणियं हवइ एयं । तेणोविव अप्पाणं गूहइ ओभावणा मा मे ॥ १६४॥ आहारस्स उ काले नीहारस्सावि होइ पडिणीयं । रोसेण धमधमंतो जं वंदइ रुट्ठमेयं तु ॥ १६५ ॥ नवि कुप्पसि न पसीयसि कट्ठसिवो चेव तज्जियं एयं । सीसंगुलिमाईहि य तज्जेइ गुरुं पणिवयंतो ॥ १६६ ॥ वीसंभट्ठाणमिणं सब्भावजढे सढं भवइ एयं । कवडंति कइयवंति य सढयावि य हुंति एगट्ठा ॥ १६७ ॥ गणिवायगजिज्जत्ति हीलिउं किं तुमे पणमिऊण । दरवंदियंमिवि कहं करेइ पलिउंचियं एयं ॥ १६८ ॥ अंतरिओ तमसे वा न वंदई वंदई उ दीसंतो । एयं दिट्ठमदिट्ठ सिंगं पुण मुद्धपासेहिं ॥ १६९ ॥ करमिव मन्नइ दिंतो वंदणयं आरहंतियकरोत्ति । लोयइकराउ मुक्का न मुच्चिमो वंदणकरस्म ॥ १७० ॥ आलिद्धमणालिद्धं रयहरणसिरेहिं होइ चउभंगो । वयणक्खरेहिं ऊणं जहन्नकालेवि सेसेहिं ॥ १७१ ॥ दाऊण वंदणं मत्थएण वंदामि चूलिया एसा । मूयव्व सद्दरहिओ जं वंदइ मूयगं तं तु ॥ १७२ ॥ ढड्डुरसरेण जो पुण सुत्तं घोसेइ ढड्ढरं तमिह । चुडलिं व गिहिऊणं रयहरणं होइ चुडलिं तु ॥ १७३ ॥ पडिक्कमणे सज्झाए काउस्सग्गेऽवराहपाहुणए । आलोयणसंवरणे उत्तमट्ठे य वंदणयं ॥ १७४ ॥ -गाथार्थ
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मुहपत्ति, शरीर और आवश्यक के पच्चीस-पच्चीस स्थान हैं । इच्छा इत्यादि छः स्थान, छः गुण, छंदे आदि गुरु के छः वचन, पाँच वन्दन करने योग्य (अधिकारी), पाँच वन्दन के अयोग्य (अनधिकारी), वन्दन की पाँच निषेधावस्था, एक अवग्रह, वन्दन के पाँच नाम तथा वन्दन के
द्वार २
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