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प्रवचन-सारोद्धार
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पसंते आसणत्थे य उवसंते उवट्ठिए। अणुन्नवित्तु मेहावी, किइकम्मं पउंजए ॥ १२५ ॥ आयप्पमाणमित्तो चउदिसिं होइ उग्गहो गुरुणो। अणणुन्नायस्स सया न कप्पए तत्थ पविसेउं ॥ १२६ ॥ वंदणचिइकिइकम्मं पूयाकम्मं च विणयकम्मं च । वंदणयस्स इमाइं हवंति नामाई पंचेव ॥ १२७ ॥ सीयले खुड्डए कण्हे, सेवए पालए तहा। पंचेए दिटुंता किइकम्मे हुंति नायव्वा ॥ १२८ ॥ पुरओ पक्खासन्ने गंताचिट्ठणनिसीयणायमणे। आलोयणऽपडिसुणणे पुव्वालवणे य आलोए ॥ १२९ ॥ तह उवदंस निमंतण खद्धा अयणे सहा अपडिसुणणे। खद्धत्ति य तत्थगए किं तुम तज्जाय नो सुमणे ॥ १३० ॥ नो सरसि कहं छित्ता परिसं भित्ता अणुट्ठियाइ कहे । संथारपायघट्टण चिट्ठोच्चसमासणे यावि ॥ १३१ ॥ पुरओ अग्गपएसे पक्खे पासंमि पच्छ आसन्ने । गमणेण तिन्नि ठाणेण तिन्नि तिण्णि य निसीयणए ॥ १३२ । विणयब्भंसाइगदूसणाउ आसायणाओ नव एया। सेहस्स वियारगमे रायणिय पुव्वमायमणे ॥ १३३ ॥ पुव्वं गमणागमणालोए सेहस्स आगयस्स तओ। राओ सुत्तेसु जागरस्स गुरुभणियऽपडिसुणणा ॥ १३४ ॥ आलवणाए अरिहं पुव्वं सेहस्स आलवेंतस्स। रायणियाओ एसा तेरसमाऽऽसायणा होइ ॥ १३५ ॥ असणाईयं लद्धं पुल्वि सेहे तओ य रायणिए । आलोए चउदसमी एवं उवदंसणे नवरं ॥ १३६ ॥ एवं निमंतणेऽवि य लड़े रयणाहिगेण तह सद्धि । असणाइ अपुच्छाए खद्धंति बहुं दलंतस्स ॥ १३७ ॥
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