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________________ विषय प्रवेश तत्त्वार्थसूत्र भी “उपयोगो लक्षणम्"१६३ कहकर इसी बात को पुष्ट करता है। उपयोग के दो भेद हैं : (१) साकार उपयोग (सविकल्प); और (२) निराकार उपयोग (निर्विकल्प) । साकार उपयोग : जो वस्तु के विशेष स्वरूप को ग्रहण करता है, वह साकार उपयोग है। निराकार उपयोग : जो वस्तु के सामान्य स्वरूप को ग्रहण करता है, वह निराकार उपयोग है। साकार उपयोग ज्ञान है और निराकार उपयोग दर्शन अर्थात् अनुभूति है।८४ जिसके द्वारा आत्मा जानती है उसे ज्ञानोपयोग और जिसके द्वारा आत्मा देखती है अर्थात् अनुभव करती है उसे दर्शनोपयोग कहा गया है। ये दोनों उपयोग आत्मा से कथंचित अभिन्न माने गये हैं, क्योंकि आत्मा को छोड़कर ये उपयोग अन्यत्र कहीं नहीं रहते। अतः आत्म-सापेक्ष होने से दोनों आत्मा से अभिन्न हैं। पुनः ये दोनों उपयोग आत्मा से कथंचित् भिन्न भी हैं; क्योंकि उपयोगरूप पर्याय उत्पन्न होती हैं और नष्ट होती हैं। जो उपयोगरूप पर्याय समाप्त हो गई, वह आत्मा से भिन्न होती है। क्योंकि आत्मा तो रहती है, किन्तु ये पर्याय नष्ट हो जाती हैं।६५ उत्तराध्ययनसूत्र में आत्मा के लक्षण ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य और उपयोग बताये गए हैं।६६ फिर भी आत्मा का असाधारण लक्षण तो उपयोग ही है। उपयोग का अर्थ बोधरूप व्यापार किया जाता है। उपयोग शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की गई है - “उपयुज्यते वस्तुपरिच्छेदं बोध-रूप व्यापर्यते जीवोऽनेनेत्युपयोगः” अर्थात् जीव जिसके द्वारा वस्तु का परिच्छेद अर्थात् बोधिरूप व्यापार करता है या उसमें प्रवृत्त होता है, उसे ही उपयोग कहा जाता है। जीव का मूल लक्षण उपयोग ही है। यह निगोद से लेकर सिद्ध १६३ तत्त्वार्थसूत्र २/८ । १६४ समयसार नाटक, मोक्षद्वार १० । १६५ उत्तराध्ययनसूत्र १४/१६ । १६६ 'नाणं च दसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा । वीरियं उवयोगो य, एयं जीवस्स लक्खणं ।। ११ ।।' -उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन २८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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