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________________ विषय प्रवेश ३७ ४. नैतिक आदेश किसी कर्ता की अपेक्षा रखते हैं। यदि आत्मा अकर्ता है तो नैतिक आदेश किसके लिए ? ५. मुक्ति यदि सदाचरण का परिणाम है, तो अकर्ता आत्मा के लिए उसका क्या अर्थ रहेगा। आत्मा के कर्तृत्व एवं अकर्तृत्व को तीन दृष्टिकोणों से अभिव्यक्त किया जा सकता है - १. व्यावहारिक दृष्टि से आत्मा शरीर के सहयोग से (क्रियाओं की) कर्ता है। जब तक आत्मा कर्म शरीर से युक्त है, वह कर्मों की कर्ता है और उस स्थिति में वह शुभाशुभ कर्मों के लिए उत्तरदायी भी है।१४ २. पर्यायार्थिक निश्चयदृष्टि (अशुद्धनिश्चयनय) के अनुसार आत्मा जड़ कर्मों की कर्ता नहीं है वरन् मात्र कर्मपुद्गल के निमित्त से अपने चैतसिक भावों (अध्यवसाय) की कर्ता है।१५ ३. शुद्ध निश्चयनय या द्रव्यार्थिक दृष्टि से आत्मा परद्रव्यों की अकर्ता है। मात्र अपनी स्वभाव पर्यायों की कर्ता है।" ५. आत्म अकर्तृत्व सम्बन्धी सांख्यमत की समीक्षा ___सांख्यदर्शन में पुरुष (आत्मा) को कूटस्थ-नित्य माना गया है, अतः वह अकर्ता है। उसकी मान्यता है कि प्रकृति परिणामी होने के कारण वही कर्मों की कर्ता है। पुण्य-पाप, बन्धन-मुक्ति आदि का सम्बन्ध प्रकृति से ही है।१७ इसके विरोध में जैन दार्शनिकों का कहना यह है कि यदि आत्मा अकर्ता है और जड़ प्रकृति ही कर्ता है; तो फिर आत्मा को शुभाशुभ कर्मों का उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता। प्रकृति को जड़ माना गया है। जड़ वस्तु चेतन भावों की कर्ता नहीं हो सकती। क्योंकि पुण्य-पाप या कर्मों का शुभत्त्व या अशुभत्त्व चेतन भावों के आधार पर ही निर्भर होता है। अचेतन ११४ समयसार, कर्तृकर्माधिकार ८४ । १५ समयसार गाथा १ एवं ८३ । ११६ समयसार गाथा ६२ । ११७ (क) तत्त्वार्थवार्तिक (२/१०/१); (ख) षड्दर्शन समुच्चय टीका २६६ । आप्तपरीक्षा, पृ. ११४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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