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विषय प्रवेश
ही ज्ञान करती है, जबकि पाँचों इन्द्रियों के विषयों का एकत्रीभूत रूप में ज्ञान करनेवाला अन्य कोई अवश्य है और वही आत्मा है।
आत्मा का अस्तित्व
विशेषावश्यकभाष्य में आत्मा के अस्तित्व को सिद्ध करते हुए कहा गया है कि आत्मा का अस्तित्व स्वयंसिद्ध है क्योंकि उसी के आधार पर संशयादि उत्पन्न होते हैं । १३ आत्मा के अस्तित्व के प्रति संशय स्वयं ही आत्मा की सत्ता को सिद्ध करता है; क्योंकि संशयकर्त्ता के बिना संशय सम्भव नहीं है और जो सन्देह या संशय का कर्त्ता है, वही तो आत्मा है। जैनदर्शन के अनुसार सुख, दुःखादि आत्मा के कारण ही होते हैं । ६
ब्रह्मसूत्रभाष्य में आचार्य शंकर भी कहते हैं कि जो निरसन कर रहा है, वही तो उसका स्वरूप है । इस प्रकार आचार्य शंकर भी आत्मा के अस्तित्व के लिए स्वतः बोध को स्वीकार करते हैं । १७
पाश्चात्य दार्शनिक डेकार्ट भी संशय के आधार पर आत्मा के अस्तित्व को सिद्ध करते हैं। उनका कहना है कि किसी भी सत्ता के अस्तित्व में सन्देह किया जा सकता है किन्तु सन्देहकर्त्ता के अस्तित्व में सन्देह करना असम्भव है । सन्देहकर्त्ता का अस्तित्व सन्देह के परे है। डेकार्ट कहते हैं कि “मैं सन्देहकर्त्ता हूँ । अतः मैं हूँ।” इस प्रकार डेकार्ट ने भी आत्मा के अस्तित्व को स्वतःसिद्ध माना है।
जैनदर्शन के समान गीता भी आत्मा को स्वतन्त्र नित्य द्रव्य के
५२ सूत्रकृतांग १/१/८ | ५३ विशेषावष्यकभाष्य १५७५ ।
५४ विशेषावष्यकभाष्य १५७१ ।
५५ वही १५५७ ।
५६ (क) जैन दर्शन, पृ. १५४ ।
(ख) आचारांगसूत्र १ / ५/५/१६६ ।
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५८ पश्चिमी दर्शन पृ. १०६ ।
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ब्रह्मसूत्र - शंकरभाष्य ३/१/७ ।
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- यदुनाथ सिन्हा ।
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