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________________ २८८ जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा जैनदर्शन में परमात्मा के दो प्रकार माने गये हैं।' १. अर्हत् और २. सिद्ध। ५.१.१ अर्हत् परमात्मा जिस आत्मा ने ज्ञानावरणादि चारों घातीकर्मों को क्षय कर दिया है और उसके परिणामस्वरूप जिसमें अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख, अनन्तवीर्य - ऐसे अनन्त-चतुष्टय का प्रकटन हो गया है, उसे अर्हत् परमात्मा कहा गया है। अर्हत् परमात्मा वीतराग, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी होते हैं। उन्हें अन्य परम्परा की शब्दावली में हम जीवनमुक्त भी कह सकते हैं; क्योंकि जिसकी जन्म मरण की परम्परा समाप्त हो गयी वह चरम शरीरी होता है। वह इस शरीर के पश्चात अन्य शरीर को धारण नहीं करता। यह उसका अन्तिम शरीर होता है। देहपात होने पर वे सिद्धावस्था को प्राप्त कर लेते हैं। अर्हत् परमात्मा संसार में होकर भी वे उससे अलिप्त होते है और सामान्य रूप से सदैव ही अपने स्वस्वरूप में निमग्न रहते हैं। अर्हत् परमात्मा को केवली भी कहा जाता है, केवली शब्द के दो अर्थ हैं : १. जो केवल अपनी आत्मा में ही रमण करते हैं वे केवली कहे जाते हैं क्योंकि उनकी अभिरुचि बाह्य जगत् में नहीं होती और २. केवलज्ञान का धारक होने से उन्हें केवली कहा जाता है; क्योंकि केवलज्ञान अकेला और असहाय होता है उन्हें अन्य किसी ज्ञान की अपेक्षा नहीं होती है। ५.१.२ सामान्य केवली और तीर्थंकर जैन परम्परा में अर्हत् परमात्मा के दो प्रकार माने गये हैं : १. सामान्य केवली और २. तीर्थंकर । सामान्य केवली और तीर्थंकर में अनन्त-चतुष्टय के प्रकटन की अपेक्षा से कोई अन्तर नहीं होता। दोनों ही अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन अनन्तसुख और अनन्तवीर्य के स्वामी होते हैं। इस दृ ष्टि से दोनों में समानता रही हुई है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि जैन 'डॉ. सागरमल जैन से व्यक्तिगत चर्चा के आधार पर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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