SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पूज्या श्री के उन महान उपकारों का मैं कहाँ तक वर्णन करूँ, एतदर्थ मेरे पास शब्द नहीं हैं। जिनकी प्रत्यक्ष कृपादृष्टि से मेरा अन्तर- सुमन खिला, जिनके कृपापूर्ण आशीर्वचन से यह कार्य किया जा सका, जिनके प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन से मेरी जीवनयात्रा को गति मिली। आपश्री की कृपा के अभाव में प्रस्तुत कृति की इस रूप में कल्पना भी असम्भव थी । प्रस्तुत शोधग्रन्थ के विषय का चयन मैंने पूज्याश्री की आज्ञानुसार किया । आपश्री का एक ही कहना था कि विषय आध्यात्मिक हो । साथ ही साथ अधिकाधिक स्वाध्याय की अपेक्षा रखता हो एवं जीवन में निरन्तर आत्मोन्मुखी होने की प्रेरणा देता हो तथा आधुनिक युग में युवा पीढ़ी के लिए निदेशक के रूप में उपयोगी हो । समतामूर्ति, भगिनीवर्या प. पू. प्रीति-सुधा श्रीजी म.सा. एवं प्रतिभासम्पन्न प. पू. प्रीतियशाश्रीजी म.सा., मृदुस्वभावी प्रियकल्पनाश्रीजी, स्नेह - सरिता प्रियरंजनाश्रीजी, प्रियश्रद्धांजनाश्रीजी, प्रियस्नेहांजनाश्रीजी, प्रियसौम्यांजनाश्रीजी, प्रियदिव्यांजना श्रीजी, प्रियशुभांजनाश्रीजी, प्रियदक्षांजनाश्रीजी, प्रियश्रुतांजनाश्रीजी, प्रियस्वणांजनाश्रीजी, प्रियदर्शांजनाश्रीजी, प्रियज्ञानांजनाश्रीजी, प्रियश्रेष्ठांजनाश्रीजी, प्रियमेघांजनाश्रीजी आदि के सहयोग का स्मरण इस ग्रन्थ की पूर्णाहुति की वेला में करना मैं आवश्यक समझती हूँ । वात्सल्यनिर्झरा, परम सहयोगिनी भगिनीवर्या प. पू. प्रियस्मिताश्रीजी म.सा. ने सामाजिक प्रवृत्तियों को संभालकर अध्ययन का अवसर प्रदान किया और समय-समय पर स्वच्छ प्रतिलिपी तैयार करने आदि कार्यों में वे मेरी सतत सहयोगिनी रही हैं। आपश्री का आत्मीय सहयोग इस कृति का प्राणतत्त्व है। मधुरकण्ठी, स्नेहप्रदात्री भगिनी श्री प्रियवन्दनाश्रीजी, जिनकी इस अनुसंधानकार्य में निरन्तर विनयान्वित सेवाएँ रही हैं, सर्वथा स्तुत्य हैं। वे भी यद्यपि अपनी पीएच.डी. सम्पन्न करने में संलग्न रहीं, तथापि उन्होंने अपने कार्य को गौण बनाकर मेरे कार्य की प्रगति एवं लेखन में पूर्ण सहयोग दिया है । अनन्यसेवाभाविनी प्रियप्रेक्षांजनाश्रीजी एवं अध्ययनरता प्रिय- श्रेयांजनाश्रीजी का भी इस शोधकार्य को पूर्ण करने में सक्रिय सहयोग रहा है । इन दोनों ने अपनी स्नातक कक्षा का अध्ययन जारी रखते हुए भी हमारी Jain Education International V For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy